सुरपति का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- छुट गये हैं प्राण उन्हीं उज्जवल मेघों के वन में , जहां मिली थी तुम क्षीरोदधि में लालिमा-लहर-सी . कई बार चाहा , सुरपति से जाकर स्वयं कहूँ मैं , अब उर्वशी बिना यह जीवन बर हुआ जाता है ,
- छुट गये हैं प्राण उन्हीं उज्जवल मेघों के वन में , जहां मिली थी तुम क्षीरोदधि में लालिमा-लहर-सी. कई बार चाहा, सुरपति से जाकर स्वयं कहूँ मैं, अब उर्वशी बिना यह जीवन बर हुआ जाता है, बड़ी कृपा हो उसे आप यदि भू-तल पर आने दें पर मन ने टोका, “क्षत्रिय भी भीख मांगते हैं क्या”?
- गजकेशरी योग से लेकर दरिद्र योग तक , दत् तक पुत्र योग से लेकर मातृत् यक् त योग तक , पूर्णायु या शताधिक आयुर्योग से लेकर अमितमायु योग तक , सर्पदंशयोग से दुर्मरण योग तक , महालक्ष् मी और सरस् वती योग से लेकर दरिद्र योग तक तथा सुरपति योग से लेकर भिक्षुक योग तक।
- यह ध्यान दिया जाने योग्य है कि मर्यादा कानून की अज्ञानतावष विधिक प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड पर लाने के आवेदन पत्र कृश्ण मोहन बनाम सुरपति बनर्जी एआईआर 1925 कल 0 684 , रामचन्द्र बनाम सभापति एआईआर 1928 मद्रास 404 , मेहरसिंह बनाम सोहनसिंह एआईआर 1936 लाहौर 710 और अब्दुल लतीफ बनाम फजल अली में अनुमत किये गये थे।
- वह सीधा सुरपति इन्द्र के पास पहुंचा तथा भौहें टेढ़ीकरके क्रोध के साथ बोला-- सुरेश्वर आपने मेरी क्षुधा का निवारण करने केलिए मुझे सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसने का अधिकार दिया था , किन्तु अब आपनेयह अधिकार दूसरे को किस कारण दे दिया? सिंहिका पुत्र राहु की क्रोध-युक्त चकित कर देने वाली वाणी सुनकर देवराजइन्द्र उसका मुख निहारने लगे.
- > ऊंची जाति पपीहरा , पिये न नीचा नीर कै सुरपति को जांचई , कै दुःख सहै सरीर संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पपीहरा तो एक तरह से ऊंची जाति का दिखता है जो कभी भी नीचे धरती पर स्थित जल का सेवन न कर स्वाति नक्षत्र क जल के लिये याचना देवराज इंद्र से याचना करता है या अपना जीवन त्याग देता है।
- यह कुछ मुझको नहीं चाहिए , देव धर्म को बल दें , देना हो तो मुझे कृपा कर कवच और कुंडल दें . ' ' कवच और कुंडल ! ' विद्युत छू गयी कर्ण के तन को ; पर , कुछ सोच रहस्य , कहा उसने गंभीर कर मन को . ' समझा , तो यह और न कोई , आप , स्वयं सुरपति हैं , देने को आये प्रसन्न हो तप को नयी प्रगती हैं .
- भगवान मधुसूदन की आज्ञा का अनुपालन करते हुए ‘ मय ' ने धर्म पुरुष युधिष्ठिर के लिए भव्य सभाभवन का निर्माण किया , जबकि विश्वकर्मा जी ने अनेक महलों का निर्माण कर अपनी विशिष्टता को बनाये रखा तथा उसमें सुरपति इंद्र का महल तो आकाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलायमान है , उसमें किसी प्रकार के शोक का प्रवेश नहीं है तथा उसमें अनेक वृक्षों में कल्पतरू का विशेष महत्व है जो कि आपकी सभी इच्छाआंे की पूर्ति करता है।
- दीन विप्र ही समझ कहा-धन , धाम , धारा लेने को , था क्या मेरे पास , अन्यथा , सुरपति को देने को ? ' केवल गन्ध जिन्हे प्रिय , उनको स्थूल मनुज क्या देगा ? और व्योमवासी मिट्टी से दान भला क्या लेगा ? फिर भी , देवराज भिक्षुक बनकर यदि हाथ पसारे , जो भी हो , पर इस सुयोग को , हम क्यों अशुभ विचरें ? ' अतः आपने जो माँगा है दान वही मैं दूँगा , शिवि-दधिचि की पंक्ति छोड़कर जग में अयश न लूँगा .
- दीन विप्र ही समझ कहा-धन , धाम , धारा लेने को , था क्या मेरे पास , अन्यथा , सुरपति को देने को ? ' केवल गन्ध जिन्हे प्रिय , उनको स्थूल मनुज क्या देगा ? और व्योमवासी मिट्टी से दान भला क्या लेगा ? फिर भी , देवराज भिक्षुक बनकर यदि हाथ पसारे , जो भी हो , पर इस सुयोग को , हम क्यों अशुभ विचरें ? ' अतः आपने जो माँगा है दान वही मैं दूँगा , शिवि-दधिचि की पंक्ति छोड़कर जग में अयश न लूँगा .