अँगनाई का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मजरूह साहब ने क्या ख़ूब लिखा है कि “ प्यार अरमानों का दर खटकाये , ख़्वाब जागी आँखों से मिलने को आये , कितने साये डोल पड़े सूनी सी अँगनाई में ” ।
- कहावत ने यह सिद्ध कर दिया है कि स्थिति चाहे कितनी ही विकट और अँगनाई चाहे कितनी ही टेढ़ी क्यों न हो , भ्रष्टाचारी अपना भ्रष्ट आचरण और नचनिया अपना नाच दिखाकर ही रहेगा।
- ये कली खिली अँगनाई में सुरव्हित कर दे मन का मधुबन घर द्वारे गलियाँ बन महकें अलकापुर का नन्दन कानन अभिनव सपने हौं दीप्त सभी जो लिखे भाल पर विधना ने अविका की कूची बरसाये , सुधियों पर नित ला कर सावन हार्दिक मंगलकामनायें
- सुबह का सूरज अभी निकला नहीं है और अगर निकला है , तो उसका प्रकाश अभी मेरे कमरे , मेरे घर की दीवारों पर या अँगनाई तक नहीं पहुँचा है , क्योंकि आसपास खड़ी ऊँची कोठियों ने अभी उसे पूरी तरह रास्ता नहीं दिया है।
- दर्द ! तुम्हारा आभारी हूँ तुम न होते तो जीवन में है उल्लास कौन कह पाता एक पपीहा पीहू पीहू कहता फिर थक कर सो जाता लेकिन मेरे अतिथि , तुम्हारे कदमों का चुम्बन पाते ही मेरे मन की अँगनाई इक निर्धन की जागीर बन गई
- रंगा जिस प्रीत ने पग में तुम्हारे आलता आकर कपोलों पर अचानक लाज की रेखायें खींची थी अँजी थी काजरी रेखायें बन कर , जो नयन में आ कि जिसने गंध बन कर साँस की अँगनाई सींची थी -कुछ शब्द ही नहीं सिवाय...अद्भुत कहने के...गजब- अँजी थी काजरी रेखायें!!
- करवटें ले रहे आज वयसंधि के मोड़ पर जो उगे भाव अनुराग के हीरकनियों के पंखों जड़े हैं सपन भावनाओं के रंगीन विश्वास के एक चाँदी के वरकों सरीखी अगन लेती अँगड़ाई सुधियों की अँगनाई में और बोने लगी बीज फिर से नये प्रीत की पुष्पबदनी मधुर आस के
- आपकी प्रीत की रंगमय तितलियां , आईं उड़ने लगी मेरी अँगनाई में चन्द झोंके हवा के मचलते हुए, ढल गये गूँजती एक शहनाई में सांझ की काजरी चूनरी पे जड़े, आ सितारे कई पूनमी रात के और फिर घुल गई अरुणिमा भोर की उग रही रात की श्याम परछाईं में
- यूँ लगा इक नई भोर उगने लगी रुत सुहानी हुई नव वधू की तरह पाखियों के नये राग छिड़ने लगे गन्ध से लग रहा भर रही हर जगह और अँगनाई कहने लगी सांझ को उसके प्रांगण में आ गान गन्धर्व ह हर दिवस ही यहाँ पर विजय पर्व हो .
- राह में जितने मुझको मिले हमसफ़र उनका अपनत्व जीने का विश्वास है योजनों दूर मुझसे रहे हों भले मन की अँगनाई में उनका आवास है भावना के पखेरू बने वे कभी मेरे मानस के आकाश पर आ गये और अनगिन उमंगें लिये बाँह में द्वार पर मेघ-मल्हार आ गा गये