अकलंक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसी से तत्वार्थसूत्र के टीकाकार समन्तभद्र , पूज्यपाद , अकलंक और विद्यानन्द आदि मुनियों ने बड़े ही श्रद्धापूर्ण शब्दों में इनका उल्लेख किया।
- प्रत्यक्ष ज्ञान की अस्पष्टता पर बल देने के लिए अकलंक ने ' साकार ' और ' अञ्जासा ' पदों का व्यवहार किया है।
- अकलंक के पहले के आचार्यों ने जो भूमिका तैयार की थी , उसके आधार पर उन्होंने जैन न्याय का एक भव्य प्रासाद खड़ा किया।
- यह वह संग्राम है जिसमें एक चूक भी अक्षम्य होती है , इसमें वे ही हाथ बँटा सकते हैं जो सर्वथा अकलंक हो ... '
- जैन न्याय की विस्तृत जानकारी के लिए उमास्वास्ति , समंतभद्र, सिद्धदर्शन, अकलंक, वादिराजसूरि, देवसूर, हेमचंद्र मल्लिषेणसूरि और यशोविजय आदि जैन विद्वानों की रचनाओं का अध्ययन आवश्यक है।
- कुछ ज्ञान की चेतना प्रस्फुटित हुई जो आगे कुंदकुंद , सिद्धसेन , अकलंक , विद्यानंद , हरिभद्र , यशोविजय , आदि रुप में विकशीत होती गयी।
- कुछ ज्ञान की चेतना प्रस्फुटित हुई जो आगे कुंदकुंद , सिद्धसेन , अकलंक , विद्यानंद , हरिभद्र , यशोविजय , आदि रुप में विकशीत होती गयी।
- अत : अकलंक को जैन दर्शन और जैन न्याय के मध्यकाल का प्रतिष्ठाता और इसीलिये उनके इस काल को ' अकलंककाल ' कहा जा सकता है।
- अत : अकलंक को जैन दर्शन और जैन न्याय के मध्यकाल का प्रतिष्ठाता और इसीलिये उनके इस काल को ' अकलंककाल ' कहा जा सकता है।
- साथ ही उन्होंने अपने पूर्वज अकलंक की भांति कारण , पूर्वचर , उत्तरचर और सहचर-इन नये हेतुओं को पृथक् मानने की आवश्यकता को भी सयुक्तिक बतलाया है।