अगहनी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यह भारी से भारी अन्धकार का भी नाश करने वाला है॥ 12 ॥ श्रीचण्डिका देवि ! देववधुओं ने तुम्हारी प्रसन्नता के लिये यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है , इसमें अगहनी के चावल का स्वच्छ भात है , जो बहुत ही रुचिकर और चमेली की सुगन्ध से वासित है।
- जब भी लोकबाबू से बात करते समय कोई उनके कुर्ते की जेब पर नज़रें गड़ता , लोकबाबू देखने वाले के चेहरे का गणित पढ़ते हुए मन्द-मन्द मुस्कुराते , मुस्कुराहट में अगहनी बाजरे सा एक लालछाँऊ भाव फुटता कि हम पढ़े-लिखे आदमी हैं , चोर नहीं हैं- लोकबाबू के साथ ऐसा अक्सर होता था।
- ईख , रसराज ( पारा ) , निष्पाव ( सेम ) , राजधान्य ( शालि या अगहनी ) , गोक्षीर ( क्षीरजीरक ) , कुसुंभ ( कुसुम नामक पुष्प ) , कुंकुम ( केसर ) तथा नमक ये आठ वस्तुएं अर्पित करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है , इसलिए इन्हें ' सौभाग्याष्टक ' की संज्ञा दी गई है।
- शुरू-शुरू कातिक में निशा शेष ओस की बून्दियों से लदी हैं अगहनी धान की दुद्धी मंजरियाँ पाकर परस प्रभाती किरणों का मुखर हो उठेगा इनका अभिराम रूप ……… टहलने निकलता हूँ ‘परमान ' के किनारे-किनारे बढ़ता जा रहा हूँ खेत की मेडों पर से, आगे वापस जा मिला है अपना वह बचपन कई युगों के बाद आज करेगा मेरा स्वागत शरद का बाल रवि…
- गोपियाँ , अपहृत कुमारियाँ , द्रौपदी आदि से जुड़ी कन्हैया कृष्ण की गाथायें तो जगविख्यात हैं ही ! पुरोहितों के शास्त्रीय सत्रों से प्रेरणा ले आने वाले अगहन के महीने में उपजने वाले नये धान ' अगहनी ' की अच्छी उपज की मंगल कामना और कृषिभूमि पर सँवागों को पुन : प्रवृत्त करने हेतु घरनियों के सूप कातिक के महीने में बज उठे- उठो ! दीपपर्व की भोर में पुरोहितों का स्थान गृहिणियों ने ले लिया और मंत्र पाठ के स्थान पर ईश को बुलाने और दरिद्रता को भगाने की बुदबुदाहटों ने उषा का स्वागत किया।
- गोपियाँ , अपहृत कुमारियाँ , द्रौपदी आदि से जुड़ी कन्हैया कृष्ण की गाथायें तो जगविख्यात हैं ही ! पुरोहितों के शास्त्रीय सत्रों से प्रेरणा ले आने वाले अगहन के महीने में उपजने वाले नये धान ' अगहनी ' की अच्छी उपज की मंगल कामना और कृषिभूमि पर सँवागों को पुन : प्रवृत्त करने हेतु घरनियों के सूप कातिक के महीने में बज उठे- उठो ! दीपपर्व की भोर में पुरोहितों का स्थान गृहिणियों ने ले लिया और मंत्र पाठ के स्थान पर ईश को बुलाने और दरिद्रता को भगाने की बुदबुदाहटों ने उषा का स्वागत किया।
- ग्रामपाल बोलाः- हे ब्राह्मण ! पहले इस गाँव में कोई किसान ब्राह्मण रहता था , एक दिन वह अगहनी के खेत की क्यारियों की रक्षा करने में लगा था , वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक बहुत बड़ा गिद्ध किसी राही को मार कर खा रहा था , उसी समय एक तपस्वी कहीं से आ निकले , जो उस राही को लिए दूर से ही दया दिखाते आ रहे थे , गिद्ध उस राही को खाकर आकाश में उड़ गया , तब उस तपस्वी ने उस किसान से कहा ” ओ दुष्ट हलवाहे ! तुझे धिक्कार है !