अद्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यत्र क्रापि जले तैस्तु स्रातव्यं मृगभास्करे॥ इसके लिए प्रातःकाल तिल , जल , पुष्प , कुश लेकर इस प्रकार संकल्प करना चाहिये- क्क तस्सत् अद्य माघे मासि अमुकपक्षे अमुक-तिथिमारभ्य मकररस्थ रविं यावत् अमुकगोत्राः अमुकशर्मा ; वर्मा / गुप्तोहंद्ध वैकुण्ठनिवासपूर्वक श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं प्रातः स्नान करिष्ये।
- सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि / वृक्षे न वसतिं वयः - कि जैसे रात्रि के समय पक्षी वृक्षों पर बनाए गए अपने घोंसलों में सुखपूर्वक शयन करते हैं , वैसे ही रात्रि देवी की प्रसन्नता हमारे शयन के लिये याचित और अपेक्षित हैं।
- इस मास में प्रत्येक दिन प्रातःकाल तिल , जल , पुष्प , कुश और द्रव्य लेकर इस प्रकार संकल्प करना चाहिए- क्क तत्सत् अद्य माघे मासि अमुकपक्षे अमुकतिथिमारम्भ रविं यावत् अमुक गोत्राः अमुक शर्मा ; वर्मा / गुप्तोऽहंद्ध वैकुंठ निवास पूर्वक श्री विष्णुप्रीत्यर्थं प्रातः स्नानं करिष्ये।
- इस प्रकार गंगा का ध्यान और पूजन करके गंगा के पानी में खड़े होकर ॐ अद्य इत्यादि से संकल्प करें कि , ऐसे-ऐसे समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक रोज-रोज एक बढ़ाते हुए सब पापों को नष्ट करने के लिए गंगा स्तोत्र का जप करूँगा।
- इस प्रकार गंगा का ध्यान और पूजन करके गंगा के पानी में खड़े होकर ॐ अद्य इत्यादि से संकल्प करें कि , ऐसे-ऐसे समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक रोज-रोज एक बढ़ाते हुए सब पापों को नष्ट करने के लिए गंगा स्तोत्र का जप करूँगा।
- इस प्रकार गंगा का ध्यान और पूजन करके गंगा के पानी में खड़े होकर ॐ अद्य इत्यादि से संकल्प करें कि , ऐसे-ऐसे समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक रोज-रोज एक बढ़ाते हुए सब पापों को नष्ट करने के लिए गंगा स्तोत्र का जप करूँगा।
- © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित ! उस पार मुझे तुम ले जाना! घट बहता यूँ, ज्यों ये तृष हो, ना जानू, कौन हश्र होगा, चिंतित है कैसे हो तरण, अब कौन किनार ठहर होगा, जीवन-तरणी की तुम्हीं प्रिये, पुलकित पतवार बन जाना मैं नश्वर, अंधक नहरम हूँ, उस पार मुझे तुम ले जाना! हैं चहुँओर भंवर गहरे, हर वक्त सधे मुझ पर पहरे, ना बेध इन्हें मैं पाऊंगा, तुम-बिन ना मैं तर पाऊंगा, सागर-लहरों सा प्रेम तुम्हारा, मैं अद्य, अथाह, मैं आवारा...
- श्रद्धेय अवस्थी जी का कृतित्व मैं किन शब्दों में परिभाषित करूँ यह मैं स्वयं उनसे ही पूछना चाहता हूँ , अतुल नित्यबोधमय शोधरत विमल विनय संपन्न , आडम्बर अभिमान अद्य मद मात्सर्य विपन्न , अतुल ज्ञान गुण राशि अरु अद्भुत आकिंचन्य , यह शुचिता सारल्य यह धन्य अवस्थी धन्य , हे ओजस्वी वक्ता तुममें तेज कहाँ से यह आया , हे कोमल कवि , सौकुमार्य यह कहो कहाँ से है पाया , दे प्रतिभा वरदान शारदा धन्य हुई , क्योंकि तुमने मातु भारती के चरणों में , चढ़ा दिए सद्गुण अपने।