अधः का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- तीसरी समस्या है , आयातित विदेशी और पश्चिमी संस्कृतियों से उन तत्वों को स्वीकार और आत्मसात करने की जो राष्ट्रीय संस्कृति को उच्चतर तकनीकी, सौंदर्यशास्त्रीय और वैज्ञानिक मानकों तक ले जाने में सहायक हों, और चौथी समस्या है उन तत्वों का परित्याग करने की जो अधः पतन, अवनति और सामाजिक प्रतिक्रिया को सोद्देश्य बढ़ावा देने का काम करते हैं।
- १ २ . .... मृत्यु जड़त्व .... जहां विकास की गति , लय , स्पंदन , पारस्परिक लास्य , संग्रहणीयता , निरंतरता नहीं है , वही तो है चलता फिरता मानस कंकाल , वहां पर केवल असंवाद , अधोगमन , अधः पतन , अन्धकार , अंधविश्वास , अंध स्थिरता में जरा -मरण के सतत चक्र में चलते रहते हैं .
- १ २ . .... मृत्यु जड़त्व .... जहां विकास की गति , लय , स्पंदन , पारस्परिक लास्य , संग्रहणीयता , निरंतरता नहीं है , वही तो है चलता फिरता मानस कंकाल , वहां पर केवल असंवाद , अधोगमन , अधः पतन , अन्धकार , अंधविश्वास , अंध स्थिरता में जरा -मरण के सतत चक्र में चलते रहते हैं .
- यह नलिकाविहीन ग्रन्थि होती है तथा उदरीय गुहा में बाईं ओर बाएं अधः पर्शुकीय क्षेत्र ( left hypochondriac region ) में डायाफ्राम के नीचे ( inferior ) , आमाशय के फण्डस , बाएं वृक्क ( गुर्दे ) , अग्न्याशय ( पैन्क्रियाज ) की पुच्छ एवं बड़ी आँत के प्लीहज बंक ( splenic flexure ) को स्पर्श करती हुई स्थित रहती है।
- तीसरी समस्या है , आयातित विदेशी और पश्चिमी संस्कृतियों से उन तत्वों को स्वीकार और आत्मसात करने की जो राष्ट्रीय संस्कृति को उच्चतर तकनीकी , सौंदर्यशास्त्रीय और वैज्ञानिक मानकों तक ले जाने में सहायक हों , और चौथी समस्या है उन तत्वों का परित्याग करने की जो अधः पतन , अवनति और सामाजिक प्रतिक्रिया को सोद्देश्य बढ़ावा देने का काम करते हैं।
- जैसे-मनः + अनुकूल = मनोनुकूल अधः + गति = अधोगति मनः + बल = मनोबल ( ख ) विसर्ग से पहले अ , आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो , वर्ग के तीसरे , चौथे , पाँचवें वर्ण अथवा य् , र , ल , व , ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है।
- बड़े शर्म की बात शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सबसे प्रमुख क्षेत्रो में जो देश का भविष्य बनाते हैं और जो विशिष्ट राष्ट्रीय स्तम्भ हैं , में ही इस तरह का अधः पतन लाया जा रहा है जबकि फिल्म , राजनीती , होटल , व्यवसाय , ऑटो इत्यादि में कोई आरक्षण नहीं दिया जाता यहाँ तक की भूख और कपड़ो के लिए भी कोई आरक्षण नहीं मिलता .
- बिन्दु वदन युगल पयोधर बिन्दिकायें अधः संस्थित पुनः उसके अधःस्थित जो सुभग त्रिभुज त्रिकोणमय है कामबीजमयी तुम्हारी कर्षिणी मन्मथ कला वह ध्यान में जिसके तुम्हारी कामकला है विराजित वह विक्षुब्ध कर देता सपदि विविध वनिता वृन्द को किन्तु इसकी कौन गणना , बात तो यह तुच्छ सी है सूर्य-चन्द्र उरोजमयि यह जो त्रिलोकी है विराजित कर दिया करता उसे विचलित तुम्हारा ध्यानधारी हे मदनमादिनि ! मनोभव स्मरकला हे ! ॥ १ ९ ॥
- गर्भगृह के द्वार पर अंतरंग , ललाट बिंब , द्वार शंख , अधः भाग , उदुम्बर शिला तथा चंद्र शिला , बाह्य भाग में निर्मित भद्र , कर्ण तथा सप्तरथ मंदिर में प्रतिरथिकाएँ , अंतराल की बाह्य एवं अभ्यंतर रथिकाएँ , महामण्डप की अभ्यंतर एवं बाह्य भाग की भद्र एवं कर्ण रथिकाएँ , तीन अंगों के शिखर में तथा कक्षासनों के ऊर्ध्व भाग पर निर्मित एवं शुकनासक , कर्ण- श्रृंगी की समस्त रथिकाएँ देव प्रतिमाओं द्वारा अलंकृत हैं।
- गर्भगृह के द्वार पर अंतरंग , ललाट बिंब , द्वार शंख , अधः भाग , उदुम्बर शिला तथा चंद्र शिला , बाह्य भाग में निर्मित भद्र , कर्ण तथा सप्तरथ मंदिर में प्रतिरथिकाएँ , अंतराल की बाह्य एवं अभ्यंतर रथिकाएँ , महामण्डप की अभ्यंतर एवं बाह्य भाग की भद्र एवं कर्ण रथिकाएँ , तीन अंगों के शिखर में तथा कक्षासनों के ऊर्ध्व भाग पर निर्मित एवं शुकनासक , कर्ण- श्रृंगी की समस्त रथिकाएँ देव प्रतिमाओं द्वारा अलंकृत हैं।