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अधिदैव का अर्थ

अधिदैव अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. वह जो अधिभूत [ समयाधीन बस्तुओं में ] , अधिदैव [ ब्रह्मा के रूप में ] एवं अधियज्ञ [ यज्ञों के मूल रूप में ] मुझे देखता है , वह अंत समय में भी मुझे देखते हुए पूर्ण होश में प्राण त्यागता है और मुझे प्राप्त करता है //
  2. भावार्थ : जो मनुष्य मुझे अधिभूत ( सम्पूर्ण जगत का कर्ता ) , अधिदैव ( सम्पूर्ण देवताओं का नियन्त्रक ) तथा अधियज्ञ ( सम्पूर्ण फ़लों का भोक्ता ) सहित जानता हैं और जिसका मन निरन्तर मुझमें स्थित रहता है वह मनुष्य मृत्यु के समय में भी मुझे जानता है।
  3. भावार्थ : जो मनुष्य मुझे अधिभूत ( सम्पूर्ण जगत का कर्ता ) , अधिदैव ( सम्पूर्ण देवताओं का नियन्त्रक ) तथा अधियज्ञ ( सम्पूर्ण फ़लों का भोक्ता ) सहित जानता हैं और जिसका मन निरन्तर मुझमें स्थित रहता है वह मनुष्य मृत्यु के समय में भी मुझे जानता है।
  4. भावार्थ : उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं , हिरण्यमय पुरुष ( जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा , हिरण्यगर्भ , प्रजापति , ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है ) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥ 4 ॥
  5. और अंतिम काले योगी जन , कैसे केहि ज्ञान सों समुझत हैं?-२ श्री भगवानुवाच अविनाशी अक्षर ब्रह्म परम, सत-चित-आनंदम, अर्जुन हे! तप त्याग दान और यज्ञ आदि, सब कर्म नाम सों जात कहे.-३ अधिभूत जो द्रव्य कहावत है, उत्पत्ति विनाशन धर्मा हैं, मैं ही अधि यज्ञ हूँ यहि देहे, अधिदैव में होवत ब्रह्मा हैं.-४ मन
  6. भावार्थ : हे शरीर धारियों मे श्रेष्ठ अर्जुन ! मेरी अपरा प्रकृति जो कि निरन्तर परिवर्तनशील है अधिभूत कहलाती हैं , तथा मेरा वह विराट रूप जिसमें सूर्य , चन्द्रमा आदि सभी देवता स्थित है वह अधिदैव कहलाता है और मैं ही प्रत्येक शरीरधारी के हृदय में अन्तर्यामी रूप स्थित अधियज्ञ ( यज्ञ का भोक्ता ) हूँ।
  7. अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥ भावार्थ : उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं , हिरण्यमय पुरुष ( जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा , हिरण्यगर्भ , प्रजापति , ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है ) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥ 4 ॥ अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
  8. अर्जुन ने कृष्ण से सात प्रश्न किये थे “ किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम , अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते | अधियज्ञ : कथं कोSत्र देहेSस्मिन् मधुसूदन , प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोSसि नियतात्मभि : || ” ( ८ / १ , २ ) - ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत क्या है ? अधिदैव क्या है ?
  9. अर्जुन ने कृष्ण से सात प्रश्न किये थे “ किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम , अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते | अधियज्ञ : कथं कोSत्र देहेSस्मिन् मधुसूदन , प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोSसि नियतात्मभि : || ” ( ८ / १ , २ ) - ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत क्या है ? अधिदैव क्या है ?
  10. परम अक्षर - ब्रह्म है [ अक्षर का अर्थ है सनातन ] , मनुष्य का स्वभाव -अध्यात्म है , जिसके करनें से भावातीत की स्थिति मिले वह कर्म है , टाइम स्पेस में स्थित सभी सूचनाएं अधिभूत हैं , ब्रह्मा अधिदैव हैं और विकार सहित देह में स्थित आत्मा रूप में विकार रहित परमात्मा अधियज्ञ हैं , अब प्रश्न की आखिरी बात को समझना है जिसको हम अगले अंक में लेंगे ।
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