अध्वर्यु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कर्नाटक में यक्षगान कला के अध्वर्यु प्रान्त के श्री गुरुजी जन्मशती समिति के सदस्य रह चुके श्री शम्भु हेगडे श्रीराम निर्वाण के प्रसंग के अभिनय में इतने तन्मय हुए कि उन्होंने सचमुच ही रामधाम को प्रस्थान किया।
- ऋग्वेद 53 वें सूक्त के 9 वें मन्त्र से ज्ञात होता है कि महर्षि विश्वामित्र अतिशय सामर्थ्यशाली , अतीन्द्रियार्थद्रष्टा , देदीप्यमान तेजों के जनयिता और अध्वर्यु आदि में उपदेष्टा हैं तथा राजा सुदास के यज्ञ के आचार्य रहे हैं।
- यज्ञ में ऋग्वेद का होता देवों का आह्नान करता है , सामवेद का उद्गाता सामगान करता है , यजुर्वेद का अध्वर्यु देव : कोटीकर्म का वितान करता है तथा अथर्ववेद का ब्रह्म पूरे यज्ञ कर्म पर नियंत्रण रखता है।
- बल्लाल हरि आप्टे तथा अध्वर्यु सुनील लिमये ने वाजपेय सोमयज्ञ का वैदिक महत्व बतलाते हुए कहा कि इस यज्ञ के करने से जहां प्रकृति के पंचतत्वों का शुद्धिकरण होता है , वहीं प्राकृतिक सुख-संपदा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है।
- उसके लिए न केवल शाकल्य एवं घृत भी उच्च श्रेणी का विशेष व्यवस्था एवं सावधानी के साथ बना हुआ होना चाहिए , वरन् यज्ञ विधा को पूर्ण रूप से आनने वाले अध्वर्यु , उद्गाता ब्रह्मा एवं आचार्य भी होने चाहिए।
- और सायंकाल होम करनेवाला ऋत्विज एक ही होता है , परंतु दर्श (अमावस्या के दूसरे दिन प्रतिपद को होनेवाली) इष्टि में तथा पौर्णमास (पूर्णिमा के दूसरे दिन प्रतिपदवाली) इष्टि में चार ऋत्विज् होते हैं जिनके नाम हैं - अध्वर्यु, होता, ब्रह्मा और आग्नीध्र।
- तत्पश्चात् होता , अध्वर्यु और उदªाता ने राजा की ( क्षत्रिय जातीय ) महिषी ‘ कौसल्या ' , ( वैश्य जातीय स्त्री ) ‘ वावाता ' तथा ( शूद्र जातीय स्त्री ) ‘ परिवृत्ति ' - इन सबके हाथ से उस अश्व का स्पर्श कराया।
- तत्पश्चात् होता , अध्वर्यु और उदªाता ने राजा की ( क्षत्रिय जातीय ) महिषी ‘ कौसल्या ' , ( वैश्य जातीय स्त्री ) ‘ वावाता ' तथा ( शूद्र जातीय स्त्री ) ‘ परिवृत्ति ' - इन सबके हाथ से उस अश्व का स्पर्श कराया।
- विधि और अर्थवाद-वाक्यों की एकवाक्यता को स्पष्ट करने के लिए ताण्ड्य महाब्राह्मण से एक उदाहरण प्रस्तुत है- षष्ठ अध्याय के सप्तम खण्ड में अग्निष्टोमानुष्ठान की प्रक्रिया में बहिष्पवमान स्तोत्र के निमित्त अध्वर्यु की प्रमुखता में उद्गाता प्रभृति पाँच ॠत्विजों के सदोमण्डप से चात्वाल-स्थान तक प्रसर्पण का विधान है-बहिष्पवमानं प्रसर्पन्ति।
- विधि और अर्थवाद-वाक्यों की एकवाक्यता को स्पष्ट करने के लिए ताण्ड्य महाब्राह्मण से एक उदाहरण प्रस्तुत है- षष्ठ अध्याय के सप्तम खण्ड में अग्निष्टोमानुष्ठान की प्रक्रिया में बहिष्पवमान स्तोत्र के निमित्त अध्वर्यु की प्रमुखता में उद्गाता प्रभृति पाँच ॠत्विजों के सदोमण्डप से चात्वाल-स्थान तक प्रसर्पण का विधान है- बहिष्पवमानं प्रसर्पन्ति।