अपरस का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दाद हो , इनाई हो , खजुरी हो , उकवत हो , अपरस हो , एक्जीमा हो , छाजन हो तथा ऐसे ही अन्य कठिन व पुराने चर्म रोगों की दवा - हमारी परचार गाड़ी के पास से मुफ़्त लगवाइए ! सिर्फ़ खाज थोड़ै ।
- अ-नति ( नम्रता का अभाव ) : अनति ( थोड़ा ) , अ-परस ( जिसे किसी ने न छुआ हो ) : अपरस ( एक चर्म रोग ) , भू-तत्व ( पृथ्वी-तत्व ) : भूतत्व ( भूत होने का भाव ) आदि समस्त पदों की भी यही स्थिति है।
- अ-नति ( नम्रता का अभाव ) : अनति ( थोड़ा ) , अ-परस ( जिसे किसी ने न छुआ हो ) : अपरस ( एक चर्म रोग ) , भू-तत्व ( पृथ्वी-तत्व ) : भूतत्व ( भूत होने का भाव ) आदि समस्त पदों की भी यही स्थिति है।
- ज़रा सोचिये कि अपरस गर्सित यह तबका जब सिर्फ एक नेक कार्य को पटरी पर से उतारने के लिए इतने सारे प्रपंच , गंदी चालें , और दोयम दर्जे की हरकतें कर सकते है तो पिछले ६ ५ सालों में इन्होने क्या-क्या खेल नहीं रचाए होंगे ? यह असाध्य रोग निरंतर विकराल रूप धारण करते जा रहा है।
- यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह के कुष्ठ रोग - गलित कुष्ठ , सफ़ेद कुष्ठ , वादी कुष्ठ , ग्रंथि कुष्ठ , उकवत , अपरस , एक्जीमा , संक्रामक खुजली , भगंदर तथा जीर्ण व्रण ( Ulcer ) या अर्बुद ( Cancer ) rog से पीड़ित हो तो उसे पारद शिवलिंग की उपासना अवश्य ही करनी चाहि ए.
- यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह के कुष्ठ रोग - गलित कुष्ठ , सफ़ेद कुष्ठ , वादी कुष्ठ , ग्रंथि कुष्ठ , उकवत , अपरस , एक्जीमा , संक्रामक खुजली , भगंदर तथा जीर्ण व्रण ( Ulcer ) या अर्बुद ( Cancer ) rog से पीड़ित हो तो उसे पारद शिवलिंग की उपासना अवश्य ही करनी चाहि ए.
- यूं तो ' अपरस' शब्द अपने आप में बहुत व्यापक अर्थ समेटे हुए है, लेकिन इस आलेख की पृष्ठ-भूमि में इस शब्द के आम इस्तेमाल होने वाले और गौर करने लायक जो प्रमुख अर्थ मौजूद है, वे है ; अपने को सर्वोपरि समझने वाला, घमंडी, स्वार्थी, अपने बड़ों का आदर न करने वाला, अकारण भय पैदा करने वाला और नसीहत देने वाला इंसान।
- यूं तो ' अपरस' शब्द अपने आप में बहुत व्यापक अर्थ समेटे हुए है, लेकिन इस आलेख की पृष्ठ-भूमि में इस शब्द के आम इस्तेमाल होने वाले और गौर करने लायक जो प्रमुख अर्थ मौजूद है, वे है ; अपने को सर्वोपरि समझने वाला, घमंडी, स्वार्थी, अपने बड़ों का आदर न करने वाला, अकारण भय पैदा करने वाला और नसीहत देने वाला इंसान।
- फोड़ा , फुंसी , उकवत , अपरस , एक्जीमा , दिनाय , खाज , खुज़ली , सफ़ेद कुष्ठ , गलित कुष्ठ तथा कील मुंहासे आदि से लेकर अर्बुद , भगंदर , कर्कट ( कैंसर ) आदि सब यदि कुंडली में - राहू लग्नेश के साथ छठे भाव में बैठा हो तथा लग्न में कोई शत्रु ग्रह बैठा हो चाहे वह भले ही स्वाभाविक शुभ ग्रह ही क्यों न हो , श्वेत कुष्ठ होगा .
- फोड़ा , फुंसी , उकवत , अपरस , एक्जीमा , दिनाय , खाज , खुज़ली , सफ़ेद कुष्ठ , गलित कुष्ठ तथा कील मुंहासे आदि से लेकर अर्बुद , भगंदर , कर्कट ( कैंसर ) आदि सब यदि कुंडली में - राहू लग्नेश के साथ छठे भाव में बैठा हो तथा लग्न में कोई शत्रु ग्रह बैठा हो चाहे वह भले ही स्वाभाविक शुभ ग्रह ही क्यों न हो , श्वेत कुष्ठ होगा .