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अपरा विद्या का अर्थ

अपरा विद्या अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. परा विद्या या अपरा विद्या में कोई मौलिक अंतर नहीं हेाता , न ही ज्ञान या विज्ञान में , चाहे वह पारंपरिक भारतीय विज्ञान हो या सायंस का अनुवाद अनुवाद वाला विज्ञान शब्द।
  2. मुंडकोपनिषद में वर्णित ऋग्वेदादि वेदशास्त्र-समूह रूप अपरा विद्या एवं ब्रह्मज्ञान ( ब्रह्मसाक्षात्कार ) रूप परा विद्या ये दोनों जिसमें पाई जाएँ वही विद्वान कहाता है और जिसमें यह बात न हो वह अविद्वान है।
  3. परा और अपरा विद्या के रूप में भगवती की सुविस्तृत आवरण की तरह ही जो अन्य लोग इस अवलम्बन को ग्रहण करेंगे , वे उच्च लोकों की भूमिका प्राप्त करेंगे और आत्मानन्द का सुख भोगे ।।
  4. अपरा विद्या - > चार वेड ( ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद ओर अथर्ववेद ) तथा शिक्षा , कल्प ( यज्ञ-ज्ञाज्ञ संबधित शिक्षा ) छंद , निरुक्त , ज्योतिष , विद्या तथा व्याकरण - अपरा विद्या है .
  5. अपरा विद्या - > चार वेड ( ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद ओर अथर्ववेद ) तथा शिक्षा , कल्प ( यज्ञ-ज्ञाज्ञ संबधित शिक्षा ) छंद , निरुक्त , ज्योतिष , विद्या तथा व्याकरण - अपरा विद्या है .
  6. मुंडक उपनिषद् के प्रथम खंड में ही जिसे परा एवं अपरा विद्या के रूप में ' द्वे विद्ये वेदितव्ये ' कहा है , उसी चीज को सफाई के साथ महाभारत के शांतिपर्व के ( 231 - 6 ।
  7. हे शुकदेव प्रभु का जानने के लिए दो विद्याओं को देखा जा सकता है एक परा विद्या जिससे आत्मज्ञान मिलता है और दूसरी अपरा विद्या जिससे वेदों की शिक्षा , व्याकरण , ज्योतिष आदि का ज्ञान मिलता है .
  8. उनमें ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद , शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छन्द और ज्योतिष का अध्ययन अपरा विद्या के अन्तर्गत किया जाता है तथा जिससे उस अक्षर ब्रह्म का ज्ञान होता है वह परा है .
  9. परा व अपरा विद्या की जननी गायत्री महामंत्र के जितने भी ज्ञात- अविज्ञात पक्ष हैं , उनको जन- जन के समक्ष प्रस्तुत कर एक प्रकार से समग्र मानव जाति का कायाकल्प करने , नूतन सृष्टि का सृजन करने का पुरुषार्थ इस ज्ञान के माध्यम से सम्पन्न हुआ है ।।
  10. इस उपनिषद के श्रवण मनन द्वारा जीव समस्त पापों का नाश करता है इसमें परा अपरा विद्या का स्वरूप , अक्षरब्रह्म के ज्ञान द्वारा संसार मोह से मुक्ति तथा मोक्ष कामना रखने वाले साधकों के लिए प्राणोंपासना का मार्ग दर्शाता है आत्म-ज्ञान से युक्त साधक पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर स्वयं सच्चिदानन्द स्वरूप ब्रह्म बन जाता है .
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