अभिधेय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ‘चाहिए ' का रूप सदा ‘चाहिए' ही रहता है,चाहिएँ कभी नहीं होता ।लघुकथाओं के कुछ शीर्षक जैसे -समझ,विभाजन लाचारी ,मेरे बाद,कोर्ट-कचहरी,मजबूरी,बदलाव सीधे और अभिधेय होने के कारण विषयवस्तु का संकेत कर देते हैं ।
- जो अभिधेय है , जो अर्थ वाक् में है ही , उसकी प्रतिपत्ति की प्रार्थना कवि नहीं करता ! अभिधेयार्थयुक्त शब्द तो वह मिट्टी , वह कच्चा माल है जिससे वह रचना करता है ;
- लक्षणा ( सं . ) [ सं-स्त्री . ] ( काव्यशास्त्र ) तीन शब्द शक्तियों- अभिधा , लक्षणा और व्यंजना में से दूसरी शब्द शक्ति जो अभिधेय से भिन्न परंतु उसी से संबंधित दूसरा अर्थ प्रकट करती है ; अभिप्रेत अर्थ देने वाली शब्द शक्ति।
- वे ही वास्तव में समस्त पुरुषो से उत्तम होने के कारण “ पुरुष ” शब्द के अभिधेय है - ब्रिह्दारंयक उपनिषद ( ३ / ७ / २ ३ ) ब्रह्म के विषय में कल्पना केवल उपासना की सुगमता के लिए की जाती है दूसरा कोई उपाय नहीं है - ब्रह्मसूत् र.
- भगवान् ही उसको स् वर्ग भेजें या मृत् युलोक में फल दें तो कर्म , ज्ञान , भक्ति या कोई भी तपश् चर्या आदि जो भी साधन हैं उनका फल भी भक्ति ही देती है अतएव एकमात्र भक्ति ही अभिधेय है , और प्रयोजन तत् व भी आपको बताया गया कि वो प्रयोजन है- प्रेम- महाधन।
- अभिधेय में आप लोगों को बताया गया कि यद्यपि शास् त्रों वेदों में कर्म , योग , ज्ञान तपश् चर्या अनेक साधनों का वर्णन है , उनके भी नाम अभिधेय से पुकारे जाते हैं लेकिन वे वास् तविक अभिधेय नहीं हैं , वास् तविक साधन नहीं हैं क् योंकि किसी भी साधन से न मायानिवृत्ति हो सकती है और न परमानन् द प्राप्ति हो सकती है।
- अभिधेय में आप लोगों को बताया गया कि यद्यपि शास् त्रों वेदों में कर्म , योग , ज्ञान तपश् चर्या अनेक साधनों का वर्णन है , उनके भी नाम अभिधेय से पुकारे जाते हैं लेकिन वे वास् तविक अभिधेय नहीं हैं , वास् तविक साधन नहीं हैं क् योंकि किसी भी साधन से न मायानिवृत्ति हो सकती है और न परमानन् द प्राप्ति हो सकती है।
- अभिधेय में आप लोगों को बताया गया कि यद्यपि शास् त्रों वेदों में कर्म , योग , ज्ञान तपश् चर्या अनेक साधनों का वर्णन है , उनके भी नाम अभिधेय से पुकारे जाते हैं लेकिन वे वास् तविक अभिधेय नहीं हैं , वास् तविक साधन नहीं हैं क् योंकि किसी भी साधन से न मायानिवृत्ति हो सकती है और न परमानन् द प्राप्ति हो सकती है।
- समस् त शास् त्रों वेदों में श्रीकृष् ण की प्राप्ति का ही उपाय बताया गया है , अतएव इस आत् मा का सम् बन् ध केवल श्रीकृष् ण से ही है और वह सम् बन् ध केवल जीव का नित् य दासत् व का है इसके बाद अभिधेय भी आपको समझाया गया अर्थात् किस सधन से वह साध् य प्राप् त होगा ? वह उपाय क् या है ?
- मुक्तिबोध की प्रतिबद्धता समग्रतः ( कुल मिलाकर) स्वीकारवादी और उनकी कथन-प्रणालीअधिकांशतः अभिधेय, 'अभिधेय' शब्द से यह तात्पर्य नहीं है कि उनकी काव्याभि व्यक्तिएकदम सपाट (कथित) या शब्दार्थ-ल्यापार वाली सामान्य है, यहां यह शब्द उनकीकवि-दृष्टि (पोयटिक एप्रोच) की प्रकृति के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त किया गया है, मुक्तिबोध 'उठा पटक' या 'कूटनीति' में अधिक विश्वास नहीं करते, एक सीधे-साधे गांवके आदमी की तरह बात को वे सीधे तरीक से समझ कर सीधे (साफ-~ और वेलेंस) तरीकेसे ही समझा देना अधिक पसन्द करते हैं.