अमरलोक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- आज आत्मा मिले तत्त्व परमात्म से , हम अमरलोक का रस रसा में भरें॥सोच कर इस तरह रह सकीं थिर न फिर, श्याम की लालसा से मचलने लगीं।
- कबीर का ‘ घर ' - अमरलोक - स्मृति और कल्पना के जिस संयोग का रूपक है उसमें सामाजिक सरोकार और आध्यात्मिक आकांक्षा एक-दूसरे को काटते नहीं।
- जैसे आत्मा सदा ही संसार में प्रत्येक शरीर के भीतर और बाहर भी रहती है जबकि जीव प्रत्येक शरीर में ही रहता है और परमात्मा सदा ही परमआकाश रूप परमधाम या अमरलोक में रहते हैं।
- ( 4 ) ‘ हम ' परमात्मा है , परमतत्त्वम् ( आत्मतत्त्वम् ) हमारा नाम है , शब्द-ब्रह्म ही यानि शब्द-सत्ता रूप बचन ही हमारा रूप और परमआकाश रूप परमधाम या अमरलोक ही एक मात्र हमारा निवास है।
- वास्तव में तुलसीदास ने इस दोहे में यह बताया है कि जिस परिवार में तुझे इतनी आसक्ति है ये कभी पूर्वजन्मों की आसक्ति का ही फ़ल है और तू मुक्त और अमरलोक का आत्मा अपनी आसक्ति के कारण ही फ़ँसा दुर्दशा को प्राप्त है . .
- वह परमसत्ता रूप परमात्मा अपने प्रभाव को अपने अन्तर्गत ही समाहित करके परम आकाश रूप परमधाम रूप अमरलोक में मुक्त और अमर रूप में सर्वशक्ति-सत्ताा सामर्थ्य युक्त सच्चिदानन्द ( सत्-चित्-आनन्द ) रूप शाश्वत् शान्ति और शाश्वत् आनन्द रूप ' सदानन्दमय ' रूप में था , है और रहने वाला भी है।
- नर्मदा प्रसाद खरे ने भी बापू की देवदूत के रूप में आराधना की है - देवदूत बन कर आया था , अमृत के घट भर लाया था , मरण वरण कर प्राण दान दे , नीलकठ बन मुसकाया था , अमर पुत्र की मृत्यु भला कब - अमरलोक ने उसे पुकारा।
- ब्रह्मादि देव , इंद्रादि लोकपाल , सूर्य , चंद्र आदि नवग्रह , अश्विनी आदि सत्ताईस नक्षत्र , मेष आदि द्वादश राशियां , वासुकि आदि सर्प , यक्ष , वरुण , वैनतेय , मंदार आदि विटप , अमरलोक की रंभादि अप्सराएं , कपिल आदि सिद्धसमूह , वशिष्ठ आदि मुनीश्वर्य , कुबेर प्रमुख यक्ष , राक्षस , गंधर्व , किन्नर , विश्वावसु आदि गवैया , ऐरावत आदि अष्ट दिग्गज , उच्चैःश्रवा आदि घोड़े , सर्व-आयुध , हिमगिरि आदि श्रेष्ठ पर्वत , सातों समुद्र , परम पावनी सभी नदियां , नगर एवं राष्ट्र ये सब के सब श्रीयंत्रोत्पन्न हैं।
- ब्रह्मादि देव , इंद्रादि लोकपाल , सूर्य , चंद्र आदि नवग्रह , अश्विनी आदि सत्ताईस नक्षत्र , मेष आदि द्वादश राशियां , वासुकि आदि सर्प , यक्ष , वरुण , वैनतेय , मंदार आदि विटप , अमरलोक की रंभादि अप्सराएं , कपिल आदि सिद्धसमूह , वशिष्ठ आदि मुनीश्वर्य , कुबेर प्रमुख यक्ष , राक्षस , गंधर्व , किन्नर , विश्वावसु आदि गवैया , ऐरावत आदि अष्ट दिग्गज , उच्चैःश्रवा आदि घोड़े , सर्व-आयुध , हिमगिरि आदि श्रेष्ठ पर्वत , सातों समुद्र , परम पावनी सभी नदियां , नगर एवं राष्ट्र ये सब के सब श्रीयंत्रोत्पन्न हैं।