अमावास्या का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- वैसे तो इस पूर्ण चंद्र की सुंदर रात्रि के सम्बंध मे बहुत सी कथाएं हैं , लेकिन तथ्यात्मक दृष्टि से वर्ष की सबसे काली अमावास्या के पूर्व पड़ने वाली यह रात्रि अत्यंत मोहक और लुभावनी होती है।
- वह श्राद्ध नित्य कहलाता है , जिसके लिए ऐसी व्यवस्था दी हुई हो कि वह किसी निश्चित अवसर पर किया जाए ( यथा - आह्विक , अमावास्या के दिन वाला या अष्टका के दिन वाला ) ।
- वह श्राद्ध नित्य कहलाता है , जिसके लिए ऐसी व्यवस्था दी हुई हो कि वह किसी निश्चित अवसर पर किया जाए ( यथा - आह्विक , अमावास्या के दिन वाला या अष्टका के दिन वाला ) ।
- मत्स्य पुराण [ 255] , अग्नि पुराण[256] , सौरपुराण[257] , पद्म पुराण[258] ने 14 मनुओं (या मन्वन्तरों) की प्रथम तिथियाँ इस प्रकार दी हैं-आश्विन शुक्ल नवमी, कार्तिक शुक्ल द्वादशी, चैत्र एवं भाद्रपद शुक्ल तृतीया, फाल्गुन की अमावास्या, पौष शुक्ल
- उपर्युक्त विवेचन यह स्थापित करता है कि अमावास्या वाला मासि-श्राद्ध प्रकृति श्राद्ध है , जिसकी अष्टका एवं अन्य श्राद्ध कुछ संशोधनों के साथ विकृति ( प्रतिकृति ) मात्र हैं , यद्यपि कहीं-कहीं कुछ उल्टी बातें भी पायी जाती हैं।
- सामान्य नियम यह है कि श्राद्ध अपरान्ह्न में किया जाता है ( किन्तु यह नियम अमावास्या, महालय, अष्टका एवं अन्वष्टका के श्राद्धों के लिए प्रयुक्त होता है), किन्तु वृद्धिश्राद्ध और आमश्राद्ध (जिनमें केवल अन्न का ही अर्पण होता है) प्रात: काल में किये जाते हैं।
- और यद्यपि धरा पर प्रकाश और शक्ति के मुख्य स्रोत सूर्य देवता है , जिससे चन्द्रमा भी रात को प्रकाश और शक्ति पा चमकता है , सागरजल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है जिस कारण सागर में पूर्णमासी अथवा अमावास्या के निकट अधिक ऊंचे / नीचे ज्वार भाटा आते हैं ...
- मेरे मतानुसार इनमें यह कहा जा रहा है कि जब चंद्रमा का सूर्य से संयोग होता है ( सामान्यतः वह सूर्य से अलग रहता है , भले ही अमावास्या के दिन बहुत निकट हो ) तब उसके साथ संबद्ध अंधकार अर्थात् उसके द्वारा प्रस्तुत अंधकारमय आच्छादन ही ग्रहण के रूप में हमें दिखता है ।
- उगते सूर्य की या डूबते सूर्य की उपासना अधविश्वास है अंध विश्वास को बढ़ावा देने कादुष्परिणाम पटना के बेकसूर भोली महिलाओ व बच्चो , पुरुषो ने भुगता, वह इस अंध विश्वास की शिकार हुई! पहले आबादी कम थी, तब सामूहिकता की जरूरत पड़ती थी नदी के किनारे अमावास्या व पूर्णिमा को स्नान भी होते थे साथ मे संतों को सत्संग व सद्परामर्श भी मिलता था!
- वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता हैगोरोचन , लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु- इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधि पूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता हैभौमवती अमावास्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है।।