अमौलिक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यहाँ हम हर कृतित्व को अमौलिक मानने वाली संस्कृत परम्परा और हर ' ऑरिजनरी वृत्तांत' को संदेह से देखने वाले उत्तर-संरचनावादियों के साथ-साथ बोर्खेज जैसे लेखकों का भी स्मरण कर सकते हैं, जिन्होंने 'मूल' और 'अनुवाद', 'मौलिक' और 'अमौलिक' की पारस्परिक तथाकथित-ता को विसर्जित कर दिया।
- चाहे लोकतांत्रिक व्यवस्था जनता को उनका मौलिक अधिकार देकर भी कितनी ही अमौलिक और निरर्थक क्यों न हों चाहे उसके वास्तविक मूल्यों में कितना भी भटकाव क्यों न आ गया हो लेकिन आज भी लोकतंत्र विश्व पटल पर एक सुसंगठित , सुसंस्कृत और सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था का सूचक है।
- चाहे लोकतांत्रिक व्यवस्था जनता को उनका मौलिक अधिकार देकर भी कितनी ही अमौलिक और निरर्थक क्यों न हों चाहे उसके वास्तविक मूल्यों में कितना भी भटकाव क्यों न आ गया हो लेकिन आज भी लोकतंत्र विश्व पटल पर एक सुसंगठित , सुसंस्कृत और सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था का सूचक है।
- कुरआने मजीद ने बहुत सी राजनीतिक व शासनिक समस्याओं का समाधान , क़ानून व क़ानून बनाने और उसको लागू करने के नियमों के अतिरिक्त अमौलिक और छोटे , छोटे क़ानूनों के बारे में भी विवरण प्रस्तुत किया है जैसे साल के महीनों के बारे में ईश्वर का पवित्र कथन हैः
- इस प्रणाली का उद्द्येशय बाहरी निवेशकों की प्रणाली के लिए आईडीऍफ़सी अंतरपरण फंड को उत्तपन कर पूंजी अधिमुल्यन और आय द्बारा अधिस्वामित्व नीवेश में अंतरपरण अवसर में नकद और अमौलिक खंड के लिए इक्विटी बाजार और अंतरपरण अवसर की उपलब्धता के साथ अमौलिक खंड और नीवेश द्बारा बेलेंस में उधार और मुद्रा बाजार के साधन को उत्तपन करना है।
- इस प्रणाली का उद्द्येशय बाहरी निवेशकों की प्रणाली के लिए आईडीऍफ़सी अंतरपरण फंड को उत्तपन कर पूंजी अधिमुल्यन और आय द्बारा अधिस्वामित्व नीवेश में अंतरपरण अवसर में नकद और अमौलिक खंड के लिए इक्विटी बाजार और अंतरपरण अवसर की उपलब्धता के साथ अमौलिक खंड और नीवेश द्बारा बेलेंस में उधार और मुद्रा बाजार के साधन को उत्तपन करना है।
- [ 27] [28] आलोचकों को कपूर का प्रदर्शन एक बार फिर अमौलिक और दोहराया हुआ सा लगा, जिसने दर्शकों को बहुत कम प्रेरित किया.कुछ लोगों के अनुसार इस फ़िल्म में उनकी भूमिका कभी खुशी कभी ग़म , यादें , और उनकी पिछली फ़िल्म खुशी से कुछ ख़ास अलग नहीं थी और उनका काम उनके पिछले कामों को दुहराने तक सीमित था.
- यहाँ कवि विचारक नन्द किशोर आचार्य का यह कथन भी स्मरण कर लेना जरूरी है , ‘ क्या हमारे अर्थशास्त्राी और नीति निर्माता इतने अनुकरणधर्मी और अमौलिक हैं कि वे किसी ऐसे विकल्प का विकास नहीं कर सकते जो अपने आप में मानवीय हो और जिसे मानवीय चेहरे में दिखाने का कोई कृत्रिम प्रयास उन्हें नहीं करना पड़े ? '
- एक उदाहरण : मान लीजिए किसी ने साहित्य बिल्कुल नहीं पढ़ा हो पर अपने सहज ज्ञान तथा जीवनानुभव से वो कोई ऐसी रचना लिखे जो अपने प्रभावशीलता में गोदान के इर्द गिर्द पहुँचे , तो हम आप उसे नकलची या अमौलिक मान कर उसका परिहास करेंगे पर इसमें उस बेचारे का क्या दोष ? अपने आप में वो सर्वथा मौलिक है .
- यहाँ हम हर कृतत्व को अमौलिक मानने वाली संस्कृत परंपरा और हर ‘ऑरिजिनरी वृतांत ' को संदेह से देखने वाले उत्तर-संरचनावादियों के साथ साथ बोर्खेज़ जैसे लेखकों का भी स्मरण कर सकते हैं जिन्होंने ‘मूल' और ‘अनुवाद', ‘मौलिक' और ‘अमौलिक' की पारस्परिक तथाकथित-ता को न सिर्फ विसर्जित कर दिया, लगभग ‘बेमानी' बना दिया. अनुवाद के बारे में यह नज़र ‘आत्म' की किसी भी परिभाषा के लिये शायद उतनी ही जरूरी है जितनी अपने मूल(=जड़ों?) के बारे में कोई भी नज़र.