अव्याकृत का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ' पोट्ठपाद के यह पूछने पर कि किसलिए भंते, भगवान ने इसे अव्याकृत कहा है? तथागत नेबतलाया कि' इसलिए कि ये प्रश्न न तो अर्थयुक्त हैं, न धर्मयुक्त, न आदि ब्रह्मचर्यके उपयुक्त, न निर्वेद (वैराग्य) के लिए, न निरोध के लिए, न उपशम के लिए.
- इनमें से प्रथम तिक कुशल , अकुशल तथा अव्याकृत धर्मविषयक है , जो सबसे महत्वपूर्ण है और उसके विषय का प्ररूपण ( 1 ) चित्तुपपाद ( 2 ) रूप ( 3 ) निक्क्षेप और ( 4 ) अत्थुद्धार इन चार कांडों में किया गया है।
- लेकिन , जो पूरी तरह से जानते हैं, वे जानते हैं कि ओशो हैं 'न्यू मेन' अर्थात एक ऐसा आदमी जिसके लिए स्वर्ग, नरक, आत्मा, परमात्मा, समाज, राष्ट्र और वह सभी अव्याकृत प्रश्न तीसरे दर्जे के हैं, जिसके पीछे दुनिया में पागलपन की हद हो चली है।
- अव्याकृत को इस संदर्भ , में समझे जाने के बजाय भगवान बुद्ध द्वारा दुनिया के तमाम अनुपयोगी , निरर्थक और समय-बर्बाद करने वाले विषयों पर अनुत्पादक बहस में न पड़ने को यह कहना कि वे उन प्रश्नों से जूझने के बजाय उनसे बचते रहे , ठीक नहीं है।
- दस अव्याकृत बातों ” का भी उन्होंने अपने इन दर्शन में उत्तर दिए है . यह “ १ ० बाते ” इसलिए अव्याकृत कही गयी थी क्यों की उसका “ विश्व के पुनर्रचना ” से कोई ताल्लुख नही था , उनका ताल्लुख सिर्फ विश्व निर्मिती से था .
- दस अव्याकृत बातों ” का भी उन्होंने अपने इन दर्शन में उत्तर दिए है . यह “ १ ० बाते ” इसलिए अव्याकृत कही गयी थी क्यों की उसका “ विश्व के पुनर्रचना ” से कोई ताल्लुख नही था , उनका ताल्लुख सिर्फ विश्व निर्मिती से था .
- ऐसा कैसे हो जाएगा कि बाकि के पुनर्जन्म होते रहेंगे और तथागत का पुनर्जन्म अव्याकृत के मौन में गुम हो जाएगा ? ” डा. धर्मवीर क्यों भूल जाते हैं कि यह मामला जवाबदेही का है और भविष्य में समाज पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का भी है, भ्रम फैलाने का नहीं.
- माध्वमत में द्रव्य के निम्नलिखित बीस भेद बताये गए हैं- परमात्मा , लक्ष्मी , जीव , अव्याकृत , आकाश , प्रकृति ( गुणत्रय ) महत्तत्व , अहंकारतत्व , बुद्धि , मन , इन्द्रिय , तन्मात्राएं , महाभूत , ब्रह्माण्ड , अविद्या , वर्ण , अंधकार , वासना , काल और प्रतिबिम्ब।
- माध्वमत में द्रव्य के निम्नलिखित बीस भेद बताये गए हैं- परमात्मा , लक्ष्मी , जीव , अव्याकृत , आकाश , प्रकृति ( गुणत्रय ) महत्तत्व , अहंकारतत्व , बुद्धि , मन , इन्द्रिय , तन्मात्राएं , महाभूत , ब्रह्माण्ड , अविद्या , वर्ण , अंधकार , वासना , काल और प्रतिबिम्ब।
- किंतु , बुद्व का अव्याकृत चारों ओर से निश्छिद्र नहीं है, क्योकि परलोक को वे मानतेथे, देवताओं की योनि में उनका विश्वास था और, गरचे आत्मा को वे नाशवान समझते थे, किंतु आवागमन के सिद्वांत में उनका अटल विश्वास था और वे मानते थे कि जो आत्माशरीर के साथ नष्ट होती है, उसी का पुनर्जन्म भी होता है.