अहंवाद का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यह पोस्ट लिखने की मज़बूरी आप समझते हैं , न ? आप तो साढ़े चार वर्षीय ब्लागर ठहरे, नहीं ? सो अहंवाद, महंतवाद या मठाधीशी वगैरह से एक आम ब्लागर को कितनी तक़लीफ़ होती है, अब आपसे बेहतर कौन समझता है ?
- साहित्यकार के सामने आजकल जो आदर्ष रखा गया है , उसके अनुसार ये सभी विद्याएं उसके विषेष अंग बन गई हैं और साहित्य की प्रवृत्ति अहंवाद या व्यक्तिवाद तक परिमित नहीं रही , बल्कि वह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक होती जाती है।
- ) अतः हमारे पंथ में अहंवाद अथवा अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण को प्रधानता देना वह वस्तु है , जो हमें जड़ता , पतन और लापरवाही की ओर ले जाती है और ऐसी कला हमारे लिए न व्यक्तिरूप में उपयोगी है और न समुदाय-रूप में।
- यह पोस्ट लिखने की मज़बूरी आप समझते हैं , न ? आप तो साढ़े चार वर्षीय ब्लागर ठहरे , नहीं ? सो अहंवाद , महंतवाद या मठाधीशी वगैरह से एक आम ब्लागर को कितनी तक़लीफ़ होती है , अब आपसे बेहतर कौन समझता है ?
- सामाजिक मूल्यों में क्षरण का रचनाकर्म पर असर ' 47 के बाद के कुछ वर्षों का समय हिंदी साहित्य के इतिहास का एक ऐसा बिंदु है , जहां से साहित्य के क्षेत्र में व्यक्तिवाद , अहंवाद , अनास्थावाद , सुविधावाद , समझौतावाद , अवसरवाद आदि प्रवृतियां तीव्र गति पकड़ती हैं।
- सामाजिक मूल्यों में क्षरण का रचनाकर्म पर असर ' 47 के बाद के कुछ वर्षों का समय हिंदी साहित्य के इतिहास का एक ऐसा बिंदु है , जहां से साहित्य के क्षेत्र में व्यक्तिवाद , अहंवाद , अनास्थावाद , सुविधावाद , समझौतावाद , अवसरवाद आदि प्रवृतियां तीव्र गति पकड़ती हैं।
- हिन्दी पट्टी के लोगों की मानसिकता में एक किस्म की जो संकीर्णता , अहंवाद, ईर्ष्या, गुटबाजी, आत्म-मुग्धता, बड़बोलापन, राह चलते मुसाफिर को टंगड़ी मारकर नीचे गिरा देने और पीठ पीछे खिलखिला कर हँसने का मजा लेने का जो स्वभाव पहले से विद्यमान है, उसकी कुछ झलक ब्लॉगिंग में भी कई बार दिख जाती है।
- हिन्दी पट्टी के लोगों की मानसिकता में एक किस्म की जो संकीर्णता , अहंवाद, ईर्ष्या, गुटबाजी, आत्म-मुग्धता, बड़बोलापन, राह चलते मुसाफिर को टंगड़ी मारकर नीचे गिरा देने और पीठ पीछे खिलखिला कर हँसने का मजा लेने का जो स्वभाव पहले से विद्यमान है, उसकी कुछ झलक ब्लॉगिंग में भी कई बार दिख जाती है।
- क्योंकि उन्होने अपने अध्यक्षीय भाषण मे ही कहा था - ” हमारे पथ मे अहंवाद अथवा अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण को प्रधानता देना वह वस्तु है , जो हमे जड़ता , पतन और लापरवाही की ओर ले जाती है और ऐसी कला हमारे लिए न व्यक्तिगत -रूप मे उपयोगी है और न समुदाय -रूप मे। “
- नर और नारी प्रकृति के दो स्वरुप एक के बिना अधूरा है जीवन दूसरे का आवश्यकता रहती हर क्षेत्र में आपसी सहारे की प्रकृति नें भी सोच समझकर रचे दो अपूर्ण तन अपूर्ण मन दो अपूर्णता मिलकर बनता एक पूर्ण तन पूर्ण मन प्यासी रहती आत्मा एक के बिना दूसरे की कोई फायदा नहीं अहंवाद में आता है अहंवाद से एकाकीपन चिङचिङापन