आयास का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इन दोनों में कौन जीता यह तो नहीं कहा जा सकता , लेकिन मीरां ने कृष्ण में समाकर साबित कर दिया कि प्रेम में धैर्य , आयास और समर्पण का भाव हो तो ईश्वर को पाना भी मुश्किल नहीं।
- कलियुग में मनुष्य थोड़े से आयास से किये जाने वाले सत्कर्म द्वारा सुखपूर्वक महान धर्म के फल की प्राप्ति कर सकता है , इस प्रकार इस धर्म विषयक लोभ से हम लोगों ने उस कलिकाल में जन्म ग्रहण किया है ।।
- कलियुग में मनुष् य थोड़े से आयास से किये जाने वाले सत् कर्म द्वारा सुखपूर्वक महान धर्म के फल की प्राप्ति कर सकता है , इस प्रकार इस धर्म विषयक लोभ से हम लोगों ने उस कलिकाल में जन् म ग्रहण किया है ।।
- आज्ञा चक्र की विरल उपलद्भियों में पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ , महावृक्ष के नीचे और नदी की बाँक पर छाया है , और उनक महत्तम आयास - सहस्रार चक्र की उपलब्धि जैसा की नाम से ही स्पष्ट है -वह है 'ऐसा कोई घर आपने देखा है “।
- तो भोजन की , वस्त्र की , आवास की जो आवश्यकता है उस की पूर्ति हर एक व्यक्ति आराम से कर सकता है … रोटी सब्जी , रोटी दाल , दूध सामान्य रूप से पेट भरने की व्यवस्था थोड़े ही आयास से हो सकती है … .
- आज्ञा चक्र की विरल उपलद्भियों में पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ , महावृक्ष के नीचे और नदी की बाँक पर छाया है , और उनक महत्तम आयास - सहस्रार चक्र की उपलब्धि जैसा की नाम से ही स्पष्ट है -वह है ' ऐसा कोई घर आपने देखा है “ ।
- जब रामकुमार का अभिन्न मित्र सतीश सभ्य संसार और उन्नत देशों की उर्वरा भूमि में प्रस्फुटित , विकसित और उनकी दीर्घ आयास अनुभूति से परिपुष्ट आधुनिक नारी का परिष्कृत आदर्श-रूप मित्र के सामने रखता तो उसके रूप-रंग की तुलना में कुमार को सरला का सौंदर्य बिल्कुल फीका, नीरस और निस्सार लगने लगता था.
- यहाँ न कोई भाषागत अलंकरण है न वाग्वैदग्ध्य तथापि कवि के साथ पाठकीय तादात्म्य स्थापन में कोई आयास नहीं करना पड़ता , अलबत्ता प्रस्तुत उद्धरण में न गीतात्मकता न लय और न छंद - सीधे-सादे तरीक़े से कहा जाये तो यह ‘नयी कविता' जैसी सपाटबयानी है, फिर भी वेदना और संवेदन से भरपूर।
- ' धन् य ' और ' धिक् कार ' की शक् तियों की परसाई जी की अपनी समझ है , दो टूक और बे झिझका सर्जनात् मकता साधने का कोई अलग आयास नहीं है , कोई दावा नहीं है , लेकिन ” जीवन भर बोले जाने वाले ” गद्य की अपनी ज़िजीविषा में परसाई जी की गहरी आस् था है .
- साहित्यिक पद्धति ' न मानें , बल्कि एक जीवन-दृष्टि मानकर चलें-हालाँकि इन कहानियों को पढ़ने पर पता चलता है कि एक साहित्यिक पद्धति के रूप में भी यथार्थवाद की उपयोगिता अभी समाप्त नहीं हुई है , जैसा कि शिवमूर्ति , सारा राय और मनोज कुमार पांडेय की कहानियों में तो स्पष्ट ही देखा जा सकता है , अन्य कहानियों में भी थोड़े बौद्धिक आयास के जरिये उसे समझा जा सकता है।