उघाड़ी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- रमाकांत श्रीवास्तव की कहानी ‘ मध्यांतर ' में चैराहे पर पड़ी किसी बेहोश या मृत स्त्री की उघाड़ी देह को ढाँकने की जगह भीड़ की निगाहें उसकी नंगी टाँगों के बीच की जगह का मुज़ाहिरा करने जैसी मानसिक विकृति प्रदर्शित करती हैं।
- एल एस डी हिन्दी फ़िल्म इतिहास में एक अनोखा प्रयोग है मगर अफ़सोस ! 'ओय लकी, लकी ओय' में दिबाकर ने मनोरंजक बने रहते हुए ही दिल्ली के समाज की जो परतें उघाड़ी थीं, यहाँ वो परतें तो हैं लेकिन फ़िल्म बोझिल सी है।
- एल एस डी हिन्दी फ़िल्म इतिहास में एक अनोखा प्रयोग है मगर अफ़सोस ! ' ओय लकी , लकी ओय ' में दिबाकर ने मनोरंजक बने रहते हुए ही दिल्ली के समाज की जो परतें उघाड़ी थीं , यहाँ वो परतें तो हैं लेकिन फ़िल्म बोझिल सी है।
- उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए&
- रवीश भाई ने कई परतें तो उघाड़ी हैं लेकिन जो अपशब्दों के बारें मैं प्रयोग किया है उसे हम क्या कहें ? मुझे लगता है जिस समुदाय की बात सुधीर मिश्र कर रहे हैं, उसकी यह एक सहज अभिव्यक्ति है और सहज रूप मैं ही हमारे सामने आती है , जो कि एक बार भी आपको यह नहीं अहसास नहीं होने देती कि हम कुछ और नहीं देख रहे है जो अलग सा है, बल्कि वही देख रहे हैं जो घटित होता है उधर
- उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए ! रचनाकार: अदम गोंडवी
- उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी पड़ती है जिंदगी की इस धारा में किस किसकी नाव पार लगाओगे।
- पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल “कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल” उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को मैं निमंत्रण दे रहा हूं आएं मेरे गांव में तट पे नदियों की घनी अमराइयों की छांव में गांव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहां पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !
- पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल “कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल” उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !