कण्ठ्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जिन लोगों को पहले यह दन्त्य , कण्ठ्य या तालव्य की अवधारणा मालूम नहीं थी, उन्हें अब यह पता चल गया होगा कि इन व्यंजनों को इस प्रकार ही क्यों तालिका में रखा गया है।
- जिन लोगों को पहले यह दन्त्य , कण्ठ्य या तालव्य की अवधारणा मालूम नहीं थी, उन्हें अब यह पता चल गया होगा कि इन व्यंजनों को इस प्रकार ही क्यों तालिका में रखा गया है।
- जिन लोगों को पहले यह दन्त्य , कण्ठ्य या तालव्य की अवधारणा मालूम नहीं थी , उन्हें अब यह पता चल गया होगा कि इन व्यंजनों को इस प्रकार ही क्यों तालिका में रखा गया है।
- जिन लोगों को पहले यह दन्त्य , कण्ठ्य या तालव्य की अवधारणा मालूम नहीं थी , उन्हें अब यह पता चल गया होगा कि इन व्यंजनों को इस प्रकार ही क्यों तालिका में रखा गया है।
- मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा , अनुस्वार , अनुनासिकता , कण्ठ्य , तालव्य , मूर्द्धन्य , ओष्ठ्य , वस्त्र्य , दन्त्य , दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ , श्वास की मात्रा , उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण , संयुक्त व्यंजन , विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।-
- मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा , अनुस्वार , अनुनासिकता , कण्ठ्य , तालव्य , मूर्द्धन्य , ओष्ठ्य , वस्त्र्य , दन्त्य , दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ , श्वास की मात्रा , उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण , संयुक्त व्यंजन , विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।-
- पाठकगण कृपया एक बार फ़िर से दोहरा लें इसलिये निम्नांकित तालिका दे रहा हूँ - क् ख् ग् घ् ङ् - कण्ठ्य च् छ् ज् झ् ञ् - तालव्य ट् ठ् ड् ढ् ण् - मूर्धन्य त् थ् द् ध् न् - दन्त्य प् फ् ब् भ् म् - ओष्ठ्य
- अब तक हम काफ़ी परिभाषायें देख चुके हैं जैसे उच्चारक्रिया ( Articulation), उच्चारक स्थान (Articulator), कण्ठ्य (Velar), तालव्य (Palatal), दन्त्य (Dental), ओष्ठ्य (Bilabial) आदि, यह सभी प्राचीन भारतीय उच्चार पद्धति के ही स्वरूप हैं, इससे हमें यह भी पता चलता है कि उस जमाने में भी उच्चारशास्त्र बेहद विकसित था और उसी के अनुरूप वर्णमाला की रचना की गई थी।
- अब तक हम काफ़ी परिभाषायें देख चुके हैं जैसे उच्चारक्रिया ( Articulation ) , उच्चारक स्थान ( Articulator ) , कण्ठ्य ( Velar ) , तालव्य ( Palatal ) , दन्त्य ( Dental ) , ओष्ठ्य ( Bilabial ) आदि , यह सभी प्राचीन भारतीय उच्चार पद्धति के ही स्वरूप हैं , इससे हमें यह भी पता चलता है कि उस जमाने में भी उच्चारशास्त्र बेहद विकसित था और उसी के अनुरूप वर्णमाला की रचना की गई थी।
- अब तक हम काफ़ी परिभाषायें देख चुके हैं जैसे उच्चारक्रिया ( Articulation ) , उच्चारक स्थान ( Articulator ) , कण्ठ्य ( Velar ) , तालव्य ( Palatal ) , दन्त्य ( Dental ) , ओष्ठ्य ( Bilabial ) आदि , यह सभी प्राचीन भारतीय उच्चार पद्धति के ही स्वरूप हैं , इससे हमें यह भी पता चलता है कि उस जमाने में भी उच्चारशास्त्र बेहद विकसित था और उसी के अनुरूप वर्णमाला की रचना की गई थी।