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कैरव का अर्थ

कैरव अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. बुद्धिनाथ झा ' कैरव', प्रफुल्ल चन्द्र पटनायक, उमाशंकर, रंजन सूरीदेव, दुर्गा प्रसाद खवाड़े, श्याम सुंदर घोष, डोमन साहु 'समीर', 'ज्योत्सना' के संपादक शिवेन्द्र नारायण एवं अन्य अनेक स्वनामधन्य साहित्यकार वहां उपस्थित थे।
  2. 31 ‘ कैरव ‘ जी उन बुद्धिजीवियों में शमिल थे जिन्हें बाबू शिवपूजन सहाय , रामधारी सिंह ‘ दिनकर ‘ , रामवृक्ष बेनीपुरी तथा लक्ष्मीनारायण सुधांशु की ही कोटि में रखा जाता है।
  3. डॉ 0 बजरंग वर्मा ने ‘ हिंदी साहित्य और बिहार ‘ चतुर्थ खंड की प्रस्तावना में ‘ कैरव ‘ जी को द्विवेदी युगीन साहित्यसेवियों के बीच वैदुष्यपूर्ण समादर के लिए याद किया है।
  4. दूसरी अहम बात यह है कि यहां के शिक्षकों में ‘ सुधांशु ‘ तथा ‘ कैरव ‘ जी ऐसे साहित्य प्रेमी थे जो आगे चलकर बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गये तथा बिहार कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
  5. यह कहना गलत नहीं होगा कि 1942 में बुद्धिनाथ झा ‘ कैरव ' द्वारा नामांकित लघुकथा आज साहित्य की एक सशक्त और स्वीकृत विधा है तथा अन्य विधाओं की तरह देश -विदेश में इस पर प्रयोग होते आ रहे हैं।
  6. अपने संस्मरण में उन्होंने बताया है कि उस समय सभा भवन में राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह , हंस कुमार तिवारी , लक्ष्मीनारायण सुधांशु , नागार्जुन , बुद्धिनाथ झा ‘ कैरव ‘ , डोमन साहु ‘ समीर ‘ , ‘ ज्योत्सना ‘ के संपादक शिवेन्द्र नारायण आदि उपस्थित थे।
  7. उसके मुख पर चन्द्र पर बिंब ( कुन्दरू- लाल आंखों की ललाई ) है , बिंब पर कैरव ( आंखों में सफेद कौए ) हैं और ' कैरव ' पर मुक्ताएं ( रात भर जागने से जंभाई लेने पर स्वत : निकल पड़ने वाली आंसू की बूँदें ) हैं।
  8. उसके मुख पर चन्द्र पर बिंब ( कुन्दरू- लाल आंखों की ललाई ) है , बिंब पर कैरव ( आंखों में सफेद कौए ) हैं और ' कैरव ' पर मुक्ताएं ( रात भर जागने से जंभाई लेने पर स्वत : निकल पड़ने वाली आंसू की बूँदें ) हैं।
  9. उसके मुख पर चन्द्र पर बिंब ( कुन्दरू- लाल आंखों की ललाई ) है , बिंब पर कैरव ( आंखों में सफेद कौए ) हैं और ' कैरव ' पर मुक्ताएं ( रात भर जागने से जंभाई लेने पर स्वत : निकल पड़ने वाली आंसू की बूँदें ) हैं।
  10. तब भी , जबकि बिहार और झारखण्ड एक हुआ करता था, अनेक समृद्ध साहित्यिक विभूतियों का आविर्भाव एकीकृत बिहार में होता रहा - परमेश, कैरव, द्विज, दिनकर, बेनीपुरी, पंकज, रेणु आदि ने प्रदेश के हिन्दी साहित्य को उच्चतम शिखर तक पहुंचाया, लेकिन यहां भी संताल परगना हत्भाग्य और उपेक्षित ही रहा।
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