क्षमावान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इस प्रकार श्रीकृष्ण प्रेममय , दयामय , दृढ़व्रती , धर्मात्मा , नीतिज्ञ , समाजवादी दार्शनिक , विचारक , राजनीतिज्ञ , लोकहितैषी , न्यायवान , क्षमावान , निर्भय , निरहंकार , तपस्वी एवं निष्काम कर्मयोगी थे | वे लौकिक मानवी शक्ति से कार्य करते हुए भी अलौकिक चरित्र के महामानव थे |
- सभी राजनीतिक दल आरक्षण नाम का एक ऐसा सुर पिछड़े वर्गों को दे रहे हैं जो बजता तो उस वर्ग के लोगों के घरों में है , लेकिन इससे सुकूँ तो नेताओं के कानों को ही मिलता है और हमारी क्षमावान जनता को लगता है कि उनके जीवन के सुर सध गए हैं।
- निश्चय ही वह अत्यन्त सहनशील , क्षमावान है ( 44 ) जब तुम क़ुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के बीच , जो आख़िरत को नहीं मानते एक अदृश्य पर्दे की आड़ कर देते है ( 45 ) और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते है कि वे समझ न सकें।
- निश्चय ही वह अत्यन्त सहनशील , क्षमावान है ( 44 ) जब तुम क़ुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के बीच , जो आख़िरत को नहीं मानते एक अदृश्य पर्दे की आड़ कर देते है ( 45 ) और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते है कि वे समझ न सकें।
- ” बेशक छोटा है , लेकिन वह तुम सबसे हर विद्या में श्रेष्ठ है | वह धीर , वीर , गंभीर एवं बुद्धिमान है | इसके अतिरिक्त वह क्षमावान भी है | तुम सब तो उसके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हो | सुनो , सिर्फ आयु में बड़ा होने से ही कोई बुद्धिमान नहीं हो जाता | गधा देखा है न तुमने !
- जो सभी जीवों ( भूतों) के प्रति द्वेष भावः से विहीन हैं, जो सभी के लिए मित्रवत एवं दया (करुणा) भाव से परिपूर्ण हैं, किसी के प्रति ममत्व से रहित (निष्पक्ष) हैं , अंहकार से रहित हैं, सुख दुःख में सम और क्षमावान, संतुष्ट हैं, मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले ढृढ़-निश्चयी हैं और ईश्वर में मन और बुद्धि अर्पित किए हुए हैं वे (मुझे ) ईश्वर को प्रिय हैं।
- एक झलक तेरी चूड़ियों की खनक , महंदी की महक , पैरों से पायल की छन छन, मन मैं मिश्री घोल रही , एक झलक पाने को तेरी , मन की कोयल बोल रही | मीठी मधुर हंसी तेरी , घूंघट से झांकती चितवन तेरी , क्यू बार बार खींचलातीमुझको , तेर...उनका ज़िक्र करना गाली देने समान है उदार बन, खुशमिज़ाज़ बन, क्षमावान बन, जिस तरह कि कुदरती मेहरबानियाँ तुझ पर बरसती हैं, तू औरों पर बरसा ।
- जो पुरुष सब भूतों में द्वेषभाव से रहित , स्वार्थरहित , सबका प्रेमी और हेतुरहित दयालु है तथा ममता से रहित , अहंकार से रहित , सुख-दुःखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान है अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है , तथा जो योगी निरन्तर सन्तुष्ट है , मन इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए हैं और मुझमें दृढ़ निश्चयवाला है - वह मुझमें अर्पण किये हुए मन -बुद्धिवाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है।
- समय गवाह है कि अवतार पुरूष तथा सदगुरु मानवता का पाठ पढाने नहीं बल्कि जगाने के लिये अवतरित होते हैं , लेकिन यह बात कहने में ही आसान है क्योंकि अज्ञान और सांसारिक भ्रम निद्रा में लीन समाज का जगाने या झकझोरने पर अवतारों को सदैव दर्ुव्यवहार अथवा सूली तक का सामना करना पड़ा किन्तु इन बातों से भी अपरिवर्तनीय वे अपनी करूणा, दया अनंत क्षमावान के साथ सब कुछ हंसते हुये मान-अपमान, सुख-दु:ख, हानि-लाभ से परे मानव एवं विश्व कल्याणकारी लक्ष्य पर चलते रहे।
- मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥ भावार्थ : जो पुरुष सब भूतों में द्वेष भाव से रहित , स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता से रहित , अहंकार से रहित , सुख-दुःखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान है अर्थात अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है , मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किए हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है- वह मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धिवाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है॥ 13 - 14 ॥ यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।