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गृही का अर्थ

गृही अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. ' तो ... ' गोविंदसिंह सोचने लगे - ' इतिहास के उन भिक्षुओं की तरह जंगीपुरवाले भी मारे जाएँगे ? तो भी उन साधुओं का सौभाग् य हमें कैसे मिलेगा ? वे जीवन-मुक् त संन् यासी थे , हम जीवन-आसक् त घरबार , बाल-बच् चों वाले गृही हैं।
  2. ‘ झूठा बड़प्पन मिले , भिक्षुओं में अगुआ होऊं , मठों का अधिपति बनूं गृहस्थ परिवारों में पूजा जाऊं , गृही और भिक् खु मेरे किए हुए को प्रमाण मानें , कार्याकार्य में सब मेरे अधीन चलें , इस प्रकार मूढ़ का संकल्प इच्छा और अभिमान ही बढ़ाता है।
  3. ‘ झूठा बड़प्पन मिले , भिक्षुओं में अगुआ होऊं , मठों का अधिपति बनूं गृहस्थ परिवारों में पूजा जाऊं , गृही और भिक् खु मेरे किए हुए को प्रमाण मानें , कार्याकार्य में सब मेरे अधीन चलें , इस प्रकार मूढ़ का संकल्प इच्छा और अभिमान ही बढ़ाता है।
  4. ‘ झूठा बड़प्पन मिले , भिक्षुओं में अगुआ होऊं , मठों का अधिपति बनूं गृहस्थ परिवारों में पूजा जाऊं , गृही और भिक्खु दोनों ही मेरे किए हुए को प्रमाण मानें , और कार्यक्रमों में सब मेरे ही अधीन चलें , इस प्रकार मूढ़ का संकल्प इच्छा और अभिमान को बढ़ाता है।
  5. ‘ झूठा बड़प्पन मिले , भिक्षुओं में अगुआ होऊं , मठों का अधिपति बनूं गृहस्थ परिवारों में पूजा जाऊं , गृही और भिक्खु दोनों ही मेरे किए हुए को प्रमाण मानें , और कार्यक्रमों में सब मेरे ही अधीन चलें , इस प्रकार मूढ़ का संकल्प इच्छा और अभिमान को बढ़ाता है।
  6. और यदि उन ऋषियों के हरे-भरे समृद्ध गृही जीवन के कारण इस तुलना को स्वीकार करने में कुछ कठिनायी होती हो तो मुनिजनों से तो उनकी तुलना की ही जा सकती है-मुनि तो वे सब थे भी और प्राय : मरुवत मौन रहने के भी अभ्यासी थे-वह उनकी साधना या तपस्या का एक रूप था।
  7. लगन में बुध विराजमान है जो मारकेश का प्रभाव देने वाले है , कहने को धनेश है , लगनेश सूर्य का स्थान शनि के साथ मारक स्थान में है , रक्षा करने वाले ग्रहों में मंगल शुक्र के साथ शत्रु गृही है , चन्द्रमा रेवती के मूल नक्षत्र में जीव के कारक गुरु वक्री के साथ मृत्यु भाव में विराजमान है .
  8. संत कवि तुलसीदास ने साढ़े चार सौ वर्ष पहले अपनी कृति रामचरित मानस में कहा था “ तपसी धनवंत दरिद्र गृही , कलि कौतुक तात न जात कही ” यद्यपि तब तपस्वी और संत मोहमाया मुक्त हुआ करते थे , लेकिन तुलसीदास भविष्य दृष्टा थे और उन्होंने जो अब से साढ़े चार सौ वर्ष पहले लिख दिया वह आज प्रत्यक्ष में दिख रहा है।
  9. इसके ग्रंथकार श्री व्यंकट शर्मा के अनुसार यदि शनि उच्च हो , मूल त्रिकोण में हो , स्वगृही हो , मित्र गृही हो , शत्रु क्षेत्री , नीचस्थ अथवा अस्तंगत न हो तथा शनि का छठें , आठवें , बारहवें भाव से संबंध न हो तब वह सूर्य , चंद्र , दशम व दशमेश को प्रभावित करें तो वह जातक को स्वतंत्र व्यवसाय की ओर प्रेरित करता है।
  10. 3 . एक तथ्य यह भी है कि यदि शनि जन्म कुंडली में शत्रु गृही अस्त , छठें आठवें बारहवें से संबंधित , नीच का हो और नवमांश व दशमांश में शुभ हो जायें अर्थात् स्वगृही , उच्च , मित्र , क्षेत्री , छठें आठवें , बारहवें से संबंध न हो तो ऐसा व्यक्ति उचित दशा आने पर नौकरी छोड़कर स्वतंत्र व्यवसाय आरंभ कर देता है और सफलता प्राप्त करता है।
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