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छमाछम का अर्थ

छमाछम अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. ललनसिंह ने अकड़कर शानसिंह की ओर देखते हुए कहा-भाई साहब , क्या कहते हो , अबकी लग्न में दोनों भाभियाँ छमाछम करती हुई घर में आवें तो बात ! मैं ऐसा कच्चा मामला नहीं रखता।
  2. जब से काजल डिठौना हुआ , हो गया जो भी होना हुआ ! झम झमाझम हुई देहरी , छम छमाछम बिछौना हुआ बिन पखावज बिना पैंजनी , पाँव ख़ुद छन छनाने लगे !! नैन में जबसे...
  3. झरनों का अविराम नाद , पत्तोंकी मर्मर ध्वनि, चंचल जल का कलकल, मेघ का गर्जन, पानी का छमाछम बरसनाआँधी काहाहाकार, कलियों का चटकना, मनुष्य की भिन्न-भिन्न भाषाएँ और विचित्र उच्चारण, खग, पशु, कीट-पतंग आदि की बोलियाँ यह सब उसी संगीत के मन्द्रतार, स्वर औरलय हैं.
  4. झरनों का अविराम नाद , पत्तों की मर्मरध्वनि, चंचल जल का कलकल, मेघ का गर्जन, पानी का छमाछम बरसना, आँधी काहाहाकार, कलियों का चटकना, मनुष्य की भिन्न-भिन्न भाषाएँ और विचित्रउच्चारण, खग, पशु, कीट-पतंग आदि की बोलियाँ यह सब उसी संगीत केमन्द्रतार, स्वर और लय हैं.
  5. उन्होंने ' लगी बडूली मी जांदू मैता , अब ऐगे रंगीलू चैता ' , ' हिट सुआ कौथिग , तेरी झबरी बजी छमाछम ' , ' कैलाश मां होला हेमवंत राजा ' और ' पंचनाम देवा ' समेत विभिन्न गीतों को अपना स्वर दिया।
  6. सावन के महीने में बहुतों को खुली धूप में आकाश में बदरी के उठने , फूर्ती के साथ छा जाने और फिर छमाछम बूंदे गिरने का नज़ारा बड़ा दिलकश लगता हो, लेकिन देश में एक बड़ी आबादी के लिए यह महीना अभिशाप की तरह है।
  7. अब्दुल वाहिद आजाद सावन के महीनें में बहुतों को खुली धूप में आकाश में बदरी के उठने , फूर्ती के साथ छा जाने और फिर छमाछम बूंदे गिरने का नज़ारा बड़ा दिलक्श लगता हो लेकिन देश में एक बड़ी आबादी के लिए यह महीना अभिशाप की तरह है.
  8. मम्मी की मैं लाड़ली , बाबुल की मैं जान मैं देहरी की महक हूँ , आँगन की मुस्कान आँगन की मुस्कान , छमाछम करती डोलूं आनन्दित हों लोग , मैं जब तुतलाकर बोलूं लाइन लगा कर बैठे हैं सब लेने चुम्मी किन्तु किसी को पास न आने देगी मम्मी
  9. मम्मी की मैं लाड़ली , बाबुल की मैं जान मैं देहरी की महक हूँ , आँगन की मुस्कान आँगन की मुस्कान , छमाछम करती डोलूं आनन्दित हों लोग , मैं जब तुतलाकर बोलूं लाइन लगा कर बैठे हैं सब लेने चुम्मी किन्तु किसी को पास न आने देगी मम्मी
  10. आइए , गीत चांदनी के कुछ गीत आप भी हमारे साथ मिलकर गुनगुनाइए - दिल्ली की डॉ . कीर्ति काले ने जब बंधे बिजली स्वयं ही मोहपाशों में , चांदनी छिप जाए शरमाकर पलाशों में , जब छमाछम बाज उठे पायल घटाओं की , मांग जब भरने लगे सूरज दिशाओं की।
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