छुपाव का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कई कथाओं में कई जगह मांसाहार पर श्लोक निश्चित तौर पर होंगे ही , क्योंकि मांसाहार होता रहा - भले ही उसे धर्म की स्वीकृति न रही हो | परन्तु इसका अर्थ यह नहीं की मांसाहार की आज्ञा दी गयी है | यह होता था - यह सत्य बताया गया - हमारी संस्कृति झूठ और छुपाव की नही रही कभी भी !!!
- और इतनी अच्छी अच्छी बातें लिख रहे हैं आप , तो ये छुपाव कैसा ? जौहर साब की इतनी बेमिसाल समीक्षा की तौहीन तो आप कर रहे हैं | उनमें इतनी हिम्मत तो है कि बेबाकी से बात भी कहते हैं और पूरे डंके की चोट पर अपने नाम और तस्वीर के साथ भी | आप उनको पसंद भी कर रहे हैं और छुपे हुये भी हैं ....
- ( गीत संकलन - श्रीमती रानी लक्ष्मी कुमारी ' चूड़ावत ' राजस्थानी लोक गीत ) उपरोक्त राजस्थानी लोक गीत में एक लडकी अपनी माँ से अपने ससुराल में उस के साथ किये गये भेदभाव , दुराव छुपाव और अन्य कष्टों की कहानी बताती है कि हे मां ! अन्य सहेलियां तो झूलने जाती हैं , खेलने जाती हैं किन्तु मुझे मन भर अनाज पीसने और मन भर आता रोटी पकाने दिया जाता है ।
- पश्चिम के लिए कोई नया नहीं है मगर भारतीय संदर्भ में स्वच्छन्द यौनिकता का यह आह्वान गले नहीं उतरता . ...बिग बॉस के निर्माता /निर्माताओं की यह जुगत उन पर भारी पड़ने वाली है ऐसा मुझे लगता है -दोष सनी लियोन का नहीं है क्योकि वहां तो कोई दुराव छुपाव है ही नहीं, सब कुछ शीशे सा साफ़ है ...मगर बिग बॉस के लोगों की नीयत में स्पष्ट खोट है जिनका साध्य और साधन सब कुछ गन्दी मानसिकता लिए लग रहा है ....
- जीवन को वास्तविक गति शान्ति ऑर पूर्णता देना गुरु कॉ दायित्व है आवश्यकता यह है की आप स्वयं को गुरु के पास अपनी सारी अच्छाइयों बुराइयों के साथ पूर्ण समर्पित करदें , इसमे दुराव छुपाव आपके लिए दीर्घ कालिक दुःख कॉ कारण बन सकता है , आपको पूर्ण विशवास ऑर श्रद्घा के साथ गुरु समर्पण को तैयार होना है मेरा मानना है की एक बार आपने गुरु को समर्पण दिया तो फिर तो गुरु आपके मार्ग का स्वयं पथ प्रदर्शक बन जायेगा |
- रस और लस मे अटका है और रस और लस मे भटका है झोंक से आ कर लिपटा है और झोंक से ही तो भभका है पलट के ताप सा गर्म भी है और लपट की ऑट सा ठंडा है तेज है और क्रोध भी है और रजस है और काम भी है व्यग्र यही है , है निश्चित भी अरे यह तत्पर भी है पर निश्चिन्त नहीं माता का है तो दुलार है और गोदरी का है तो छुपाव है लाल है जी लाल है हाँ ये लाल ही तो है
- बोला - आप मुझे क्या समझ रहे हैं मुझे नहीं मालूम किन्तु मैं क्या हूँ आपको सच सच बताऊंगा लेकिन उससे पहले मैं कहके रहूँगा कि आख़िर मैं भी उसी समाज का अंग हूँ जिसके आप हैं फिर आपमें और मुझमें समझ का यह अंतर क्यों ? मैं एक घोर परंपरा वादी खानदानी पुजारी पुत्र होकर भी , जिस बाह्याचार को आप मेरी नास्तिकता कहते हैं जबकि नास्तिकता किसी व्यवहार का नाम नहीं , के छुपाव को उचित नहीं मानता फिर आप क्यों न चाहकर भी सिर्फ़ बह्याचरण से आस्तिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं ? बताइये।