छोह का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अब तो ताऊ घणा ही छोह म्ह आगया और चिल्लाकर हैडमास्टर को बुलवाया और नु बोल्या - अरे हैड मास्टर यो के रासा रोप राख्या सै ? मानीटर नकली, मास्टर नकली...ना तू तो यो बता, के यो के चाल्हा पाड राख्या सै तन्नै आडै?
- ताऊ को अब किम्मै छोह ( गुस्सा) सा आगया और बोला - अरे बावलीबूच डागदर...तू के मन्नै मारने की सोच राखी सै ? सीधी तरियां बता कि मेरी पुडिया कौण सी सै? डाँ. झटका - अरे ताऊ तैं भी नाराज होण लागरया सै? नू कर..कोई सी भी दो पुडिया खाले..
- ताई नै देख कै दोनु ताउ कुछ उट्पटान्ग मजाक करने का सोच ही रहे थे , की ताउ लद्दा का बेलेन्स बिगड गया और सायकल पिछे से ताई ग्यारसी कै दे मारी ! इब ताई नै आग्या छोह और बोली- अर थम बुढे डान्गर होलिये थमने शरम नी आती ...
- ऐसे में आधी सदी से भी ज्यादा पीछे की बातें करना पता नहीं पसंद भी करेंगे या नहीं , यही संकोच मन में बना हुआ था- पर उनके साथ ऐसे नेह छोह के संबंध बन चुके हैं कि एक दिन कह ही दिया- अमित, समय निकालो तो कुछ देर बैठकर सिर्फ बाबूजी की बातें करें।
- ऐसे में आधी सदी से भी ज्यादा पीछे की बातें करना पता नहीं पसंद भी करेंगे या नहीं , यही संकोच मन में बना हुआ था- पर उनके साथ ऐसे नेह छोह के संबंध बन चुके हैं कि एक दिन कह ही दिया- अमित, समय निकालो तो कुछ देर बैठकर सिर्फ बाबूजी की बातें करें।
- आमचो बस्तर लोक जीवन के विविध भावों , नेह, छोह, प्यार मनुहा और विशेष तौर से अपने भोले जीवन के प्रति रूप अत्याचारों को सहता और सुलगता एक सशक्त उपन्यास तो है ही साथ ही साथ पाषाण युग से आरंभ हो कर आज के पाषाण-हृदय इन्सानों तक पहुँचते हुए समय की बहुत लम्बी सड़क नापता है।
- राजीव रंजन प्रसाद के उपन्यास “ आमचो बस्तर ” की विवेचना - डॉ . वेद व्यथित लेखक - राजीव रंजन प्रसाद प्रकाशक - यश प्रकाशन , नवीन शहादरा , नई दिल्ली आमचो बस्तर लोक जीवन के विविध भावों , नेह , छोह , प्यार मनुहा और विशेष तौर से अपने भोले जीवन के प्रति रूप अत्याचारों को सहता और सुलगता ...
- राजीव रंजन प्रसाद के उपन्यास “ आमचो बस्तर ” की विवेचना - डॉ . वेद व्यथित लेखक - राजीव रंजन प्रसाद प्रकाशक - यश प्रकाशन , नवीन शहादरा , नई दिल्ली आमचो बस्तर लोक जीवन के विविध भावों , नेह , छोह , प्यार मनुहा और विशेष तौर से अपने भोले जीवन के प्रति रूप अत्याचारों को सहता और सुलगता ...
- इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूँगा कि एक दिन रश्म . .. राजीव रंजन प्रसाद के उपन्यास “आमचो बस्तर” की विवेचना - डॉ.वेद व्यथित लेखक - राजीव रंजन प्रसाद प्रकाशक - यश प्रकाशन, नवीन शहादरा, नई दिल्ली आमचो बस्तर लोक जीवन के विविध भावों, नेह, छोह, प्यार मनुहा और विशेष तौर से अपने भोले जीवन के प्रति रूप अत्याचारों को सहता और सुलगता ...
- मुहल्ले के आर-पार जाने वाली सड़क के दोनों छोह जैसे शराबख़ाने के दो द्वार बने हों जिनसे प्रवेश करने के बाद गाँव की ही महिलाओं की नज़रें झुक जाती हैं तेज़ चलने लगते और वे अपने-आप को सभी कोणों से झाँकती ‘ अपने ' लोगों की बेशर्म आँखों के नुकीले भालों को अपने शरीर के अंग-प्रत्यंग भेदती हुई पाकर मैला मेहसूस करती हैं