जलदान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- सब प्रकार के दानों से जो पुण्य प्राप्त होता है और सब तीर्थो में जो फल मिलता है , उस सब को मनुष्य वैशाख मास में केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है।
- जो पुण्य सब दानों से होता है और जो फल सब तीर्थों के दर्शन से मिलता है , उसी पुण्य और फल की प्राप्ति वैशाखमास में केवल जलदान करने से हो जाती है।
- सब प्रकार के दानों से जो पुण्य प्राप्त होता है और सब तीर्थो में जो फल मिलता है , वह सभी कुछ व्यक्ति को वैशाख माह में केवल जलदान करके प्राप्त किया जा सकता है .
- अश्वत्थामा को अपमानित कर शिविर से निकाल देने के पश्चात सारे पाण्डव अपने स्वजनों को जलदान करने के निमित्त धृतराष्ट्र तथा श्रीकृष्णचन्द्र को आगे कर के अपने वंश की सम्पूर्ण स्त्रियों के साथ गंगा तट पर गये .
- ऐसे परमार्थ परायण महामानव , जिन्होंने उच्च उद्देश्यों के लिए अपना वंश चलाने का मोह नहीं किया , भीष्म उनके प्रतिनिधि माने गये हैं , ऐसी सभी श्रेष्ठात्माओं को जलदान दें- ॐ वैयाघ्रपदगोत्राय , सांकृतिप्रवराय च ।।
- अश्वत्थामा को अपमानित कर शिविर से निकाल देने के पश्चात सारे पाण्डव अपने स्वजनों को जलदान करने के निमित्त धृतराष्ट्र तथा श्रीकृष्णचन्द्र को आगे कर के अपने वंश की सम्पूर्ण स्त्रियों के साथ गंगा तट पर गये .
- पर यह सत्य है कि हम अपनी छोटी गंगाजली में जितना जल भर लेते हैं , उतना ही तो गंगा में नहीं होता और जितनी वर्षा से हमारा बोया बीज अंकुरित हो जाता है , उतनी ही तो मेघ के जलदान की सीमा नहीं होती।
- पानीदार बनने की चाह रखने वाले जन इस वर्ष नदी , तालाब के संरक्षण कार्य में जुड़ें, सभी जगह जल बचाने तथा नदियों, तालाबों की सफाई में जुटे एवं नदियों व तालाबों को बर्बाद करने वाले तत्वों व जल के निजीकरण के खिलाफ आन्दोलन चलायें, जो पानी बचाने में जुटेगा उसे जलदान देने का पुण्य लाभ मिलेगा।
- स्वजनों को जलदान करने के बाद अजातशत्रु धर्मराज युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया और उनके द्वारा तीन अश्वमेघ यज्ञ करवाये गये इस प्रकार युधिष्ठिर का शुभ्र यश तीनों लोकों में फैल गया कुछ काल के बाद श्रीकृष्ण ने द्वारिका जाने का विचार किया और पाण्डवों से विदा ले कर तथा वेदव्यास आदि मुनियों की आज्ञा ले कर रथ में बैठ कर सात्यकि तथा उद्धव के साथ द्वारिका जाने के लिये प्रस्तुत हुये .
- वैशाख मास में सब तीर्थ आदि देवता बाहर के जल ( तीर्थ के अतिरिक्त ) में भी सदैव स्थित रहते हैं॥ भगवान विष्णु की आज्ञा से मनुष्यों का कल्याण करने के लिए वे सूर्योदय से लेकर छ : दण्ड ( २ घंटे २ ४ मिनट ) तक वहां मौजूद रहते हैं॥ सब दानों से जो पुन्य होता है और सब तीर्थों में जो फल होता है , उसी को मनुष्य वैशाख में केवल जलदान करके पा लेता है।