जाकिट का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हमरा तS सच्च पूछिये इच्छा हो रहा है कि अपना गरम कपार हियें छोर के , आत्मा का नरम मुलायमी पे सवार पहाड़ोन्मुखी हो जायें, हुआं बरफ़ का सोहाना वादी में अपना जाकिट हवा में ओछाल, महेंदर कपूर का मानबता का सलामी गावे लगें, ‘हे नील गगन के तले, धरती का पियार पले, हे हे ! ..'
- बुरका बुलेट प्रूफ जाकिट का नाम दिया जा सकता है , नारी जो नहीं दिखाना चाहती वह ना दिखे , बुर्के वाली के हम तुम हर कहीं नजर नहीं डाल सकते , बल्कि कहीं भी नहीं डाल सकते , जबकि सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल् ला , उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की
- देष आजाद होने के बाद सन् 1975 तक के पत्रकारो को मैने देखा कि वह स्वदेषी कपड़ांे के साथ सूती बस्त्र धारण करते थें एक जाकिट हुआ करती थी तथा गॉधी छाप छोला एक कॉपी या डायरी एक पेन होता था पैदल चलते थें तथा यदि कोई पत्रकार सामर्थ है तो उसके पास साईकिल हुआ करती थी समाचार भेजने केलिए डाक तार विभाग का ही सहारा हुआ करता था ।
- बुरका दत्त ना कांग्रेस की तरफ है ना तुम्हारी तरफ , वह बुरके की तरफ है जिसे बुलेट प्रूफ जाकिट का नाम दिया जा सकता है, नारी जो नहीं दिखाना चाहती वह ना दिखे, बुर्के वाली के हम तुम हर कहीं नजर नहीं डाल सकते, बल्कि कहीं भी नहीं डाल सकते, जबकि सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की कभी ऐसे वरुण गाँधी के बारे में भी लिख दिया करो, जो...
- बुरका दत्त ना कांग्रेस की तरफ है ना तुम्हारी तरफ , वह बुरके की तरफ है जिसे बुलेट प्रूफ जाकिट का नाम दिया जा सकता है, नारी जो नहीं दिखाना चाहती वह ना दिखे, बुर्के वाली के हम तुम हर कहीं नजर नहीं डाल सकते, बल्कि कहीं भी नहीं डाल सकते, जबकि सानिया तो जानती ही नहीं कि हम बोल देख रहे हैं कि बल्ला, उसे कहते हैं बंद मुटठी लाख की खुल जाये तो खाक की, अवधिया चाचा नाम में क्या रखा है फूल तो फूल है किसी भी नाम से पुकारो
- मृत्युभोज के लिए खाने पर बैठी पंगत के आगे खेदना को खड़ा किया गया , चारों तरफ से सबकी निगाहें उसकी देह बींधती जा रही थीं , लग रहा था जैसे कोई मेमना फँस गया हो भेड़ियों के गिरोह में , पंडित जी कह रहे थे .... ' अरे खेदना , एक ठो खाट , रजाई , गद्दा , चद्दर , धोती , साड़ी , जाकिट , ५ ठो बर्तन , चाउर-दाल , कुछ दछिना और बाछी दान में नहीं देते तो तुम्हारा बाप , यहीं भटकते रह जाता ... उसका मुक्ति ज़रूरी था ना ...
- मृत्युभोज के लिए खाने पर बैठी पंगत के आगे खेदना को खड़ा किया गया , चारों तरफ से सबकी निगाहें उसकी देह बींधती जा रही थीं , लग रहा था जैसे कोई मेमना फँस गया हो भेड़ियों के गिरोह में , पंडित जी कह रहे थे .... ' अरे खेदना , एक ठो खाट , रजाई , गद्दा , चद्दर , धोती , साड़ी , जाकिट , ५ ठो बर्तन , चाउर-दाल , कुछ दछिना और बाछी दान में नहीं देते तो तुम्हारा बाप , यहीं भटकते रह जाता ... उसका मुक्ति ज़रूरी था ना ...