ढलका का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- प्रेम की ऋतु फिर से आईफिर नयन उन्माद छायाफिर जगी है प्यास कोईफिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन मेंरूप रस मदमा रहीं-प्रेम की मदिरा की गागरविश्व में ढलका रहीफिर पवन का दूत लेकरप्रेम का पैगाम आया-टूटी है फिर से समाधिआज इक महादेव कीकाम के तीरों
- प्रेम की ऋतु फिर से आईफिर नयन उन्माद छायाफिर जगी है प्यास कोईफिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन मेंरूप रस मदमा रहीं-प्रेम की मदिरा की गागरविश्व में ढलका रहीफिर पवन का दूत लेकरप्रेम का पैगाम आया-टूटी है फिर से समाधिआज इक महादेव कीकाम के तीरों . ..
- चाहें तो गर्दन पर रखा छोटा-सा बन बनाएं , सिर पर रखा ऊंचा-सा जूड़ा , साइड में या माथे पर एक बालों की लट , खुली लट या एकदम ढीला-सा गर्दन पर ढलका हुआ जूड़ा , ये सभी नए अंदाज में सभी ड्रेसेस के साथ फैशन जगत में हंगामा मचा रहे हैं।
- 1एक पल जो नहीं गुजरा - उस पल को जीयूँ कैसे ? वो मय जो नहीं ढलका - उस मय को पीयूँ कैसे?तुम जब भी आती हो, एक हूक सी उठती है.तुम पास नहीं हो क्युँ, ये जख्म सीयूँ कैसे?2टुकडा टुकडा दुःख समेट के, फटा हुआ विश्वास लपेटेबेचैनी की चादर ओढे़, तुम भी सोयी - हम भी...
- 1एक पल जो नहीं गुजरा - उस पल को जीयूँ कैसे ? वो मय जो नहीं ढलका - उस मय को पीयूँ कैसे?तुम जब भी आती हो, एक हूक सी उठती है.तुम पास नहीं हो क्युँ, ये जख्म सीयूँ कैसे?2टुकडा टुकडा दुःख समेट के, फटा हुआ विश्वास लपेटेबेचैनी की चादर ओढे़, तुम भी सोयी - हम भी
- देखा करती थी हमेशा से ही पर जाने क्यूँ अलग अलग रंग में बंटे नज़र आ रहे हैं आज ये पत्ते मुझे कोई सुनहरा हरा रंग लिए हुए कोई चमकदार हरा , कोई गहरा हरा और कुछ काला , ढलका हुआ सा हरा जीवन के विभिन्न रंग मानो इन पत्तों ने समेट लिए अपने में
- देखा करती थी हमेशा से ही पर जाने क्यूँ अलग अलग रंग में बंटे नज़र आ रहे हैं आज ये पत्ते मुझे कोई सुनहरा हरा रंग लिए हुए कोई चमकदार हरा , कोई गहरा हरा और कुछ काला , ढलका हुआ सा हरा जीवन के विभिन्न रंग मानो इन पत्तों ने समेट लिए अपने में
- प्रेम की ऋतु फिर से आई फिर नयन उन्माद छाया फिर जगी है प्यास कोई फिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन में रूप रस मदमा रहीं- प्रेम की मदिरा की गागर विश्व में ढलका रही फिर पवन का दूत लेकर प्रेम का पैगाम आया- टूटी है फिर से समाधि आज इक महादेव की
- प्रेम की ऋतु फिर से आई फिर नयन उन्माद छाया फिर जगी है प्यास कोई फिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन में रूप रस मदमा रहीं- प्रेम की मदिरा की गागर विश्व में ढलका रही फिर पवन का दूत लेकर प्रेम का पैगाम आया- टूटी है फिर से समाधि आज इक महादेव की . ..
- ये अपने आगे किसी को नहीं गिनेगी ! एक हमारी बड़ी बहू को देखो , मजाल है बिना पूछे कुछ भी करे ! सत्रह साल हो गये ब्याह को -कभी जो अपने मन की की हो ! ऐसा ढाला है अपने आप को कि बस पानी ! जिधर चाहो ढलका दो , कभी चूँ तक नही।