तक़्सीम का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- बाज़ पागल ऐसे भी थे जो पागल नहीं थे ; उनमें अक्सरीयत ( बहुतायत ) ऐसे क़ातिलों की थी जिनके रिश्तेदारों ने अफ़सरों को कुछ दे दिलाकर पागलख़ाने भिजवा दिया था कि वह फाँसी के फंदे से बच जाएँ ; यह पागल कुछ-कुछ समझते थे कि हिंदुस्तान क्यों तक़्सीम हुआ है और यह पाकिस्तान क्या है ;
- मुझे अच्छी तरह याद है , मेरे शहर ग्वालियर में एक नौजवान शायर ने मुनव्वर साहब की मौजूदगी में मां पर अपनी एक बहुत संजीदा ग़ज़ल पढ़ी थी , जिसका एक शे ' र यूं था- ” बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं , तब- मैं घर में सबसे छोटा था , मेरे हिस्से आई- अम्मा . ”
- इतनी पी जाओ कि कमरे की सियह ख़ामोशी इससे पहले कि कोई बात करे तेज नोकीले सवालात करे इतनी पी जाओ कि दीवारों के बेरंग निशान इससे पहले कि कोई रूप भरें माँ बहन भाई की तस्वीर करें मुल्क तक़्सीम करें इससे पहलें कि उठें दीवारें खून से माँग भरें तलवारें यूँ गिरो टूट के बिस्तर पे अँधेरा खो जाए जब खुले आँख सवेरा हो जाए इतनी पी जाओ !
- हमारा मानना है कि मुस्लमानों को क़ुरआने करीम की आयात में तदब्बुर करने से रोकने के लिए हमेशा ही साज़िशें होती रही हैम इन साज़िशों के तहत कभी बनी उमय्यह व बनी अब्बास के दौरे हुकूमत में अल्लाह के कलाम के क़दीम या हादिस होने की बहसों को हवा दे कर मुस्लमानों को दो गिरोहों में तक़्सीम कर दिया गया , जिस के सबब बहुत ज्यादा ख़ूँरेजिया वुजूद में आई।
- एक चिंतन , दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नज़र पर छाई अम्मा सारे घर का शोर- शराबा, सूनापन, तन्हाई अम्मा उसने ख़ुद को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है धरती, अंबर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा घर में झीने-रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी, गर्म-हवा, आतिश, अंगारे, झरना, दरिया, झील, समंदर, भीनी-सी पुरवाई अम्मा बाबूजी गुजरे घर में सारी चीज़ें तक़्सीम हुईं,तो- मैं सबसे ख़ुशकिस्मत निकला, मेरे हिस्से आई अम्मा।
- ' ' संसार की धूप '' ( कविता ) तथा '' रास्ता बनता रहे '' ( ग़ज़ल ) संग्रहों के लिए चर्चित कवि एवं ग़ज़लकार प्रफुल्ल कुमार ' परवेज़ ' की अनुभव संपन्न नज़र में '' हर शाम बनिए की तरह चौखट पर पसरते पेट '' से लेकर जोड़ तक़्सीम और घटाव की की कसरत में फँसे , आँकड़े बन कर रह गए लोगों की तक़लीफ़े , त्रासदी और लहुलुहान हक़ीक़तें दर्ज़ हैं जो उनकी ग़ज़लों के माध्यम से पाठक के मन को छू लेती हैं।
- बाज़ पागल ऐसे भी थे जो पागल नहीं थे , उनमें बहुतायत ऐसे क़ातिलों की थी जिनके रिश्तेदारों ने अफ़सरों को कुछ दे दिलाकर पागलख़ाने भिजवा दिया था कि वह फाँसी के फंदे से बच जाएँ, यह पागल कुछ-कुछ समझते थे कि हिंदुस्तान क्यों तक़्सीम हुआ है और यह पाकिस्तान क्या है, लेकिन सही वाक़िआत से वह भी बेख़बर थे, अख़बारों से उन्हें कुछ पता नहीं चलता था और पहरेदार सिपाही अनपढ़ और जाहिल थे, जिनकी गुफ़्तगू से भी वह कोई नतीजा बरामद नहीं कर सकते थे।
- दस ग़ज़लें - आलोक श्रीवास्तव एक चिंतन , दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नज़र पर छाई अम्मा सारे घर का शोर- शराबा, सूनापन, तन्हाई अम्मा उसने ख़ुद को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है धरती, अंबर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा घर में झीने-रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी, गर्म-हवा, आतिश, अंगारे, झरना, दरिया, झील, समंदर, भीनी-सी पुरवाई अम्मा बाबूजी गुजरे घर में सारी चीज़ें तक़्सीम हुईं,तो- मैं सबसे ख़ुशकिस्मत निकला, मेरे हिस्से आई अम्मा।
- तुम अपनी ज़िन्दगी की हद ( सीमा ) से आगे नहीं बढ़ सकते और न उस चीज़ को हासिल ( प्रापंत ) कर सकते हो जो तुम्हारे मुकद्दर ( भाग्य ) में नहीं है , और तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि यह ज़माना ( काल ) दो दिनों पर तक़्सीम ( विभाजित ) है , एक दिन तुम्हारे मुवाफ़िक़ ( पक्ष में ) और दिन तुम्हारा मुख़ालिफ़ ( विरोधी ) , और दुनिया ममलिक़तों ( हुकूमतों ) के इंकिलाब व इंतिक़ाल ( क्रान्ति एवं स्थानान्तरण ) का घर है।
- लेकिन मैं सिर्फ़ ऐसी बातों का ज़िक्र करूँगा जैसी आपको पसंद हैं , आप अनोखी और चैंका देने वाली चीजें और बातें पसंद करते हैं ना ! इस शहर की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि इसका नाम इस्लामाबाद है , मगर इस्लामी मुसावात ( समानता ) की तालीम के बरअक्स यहाँ इन्सानों की तबका़ती तक़्सीम पर सख़्ती से अमल किया जाता है , यहाँ आदमियों की पहचान सेक्टरों , ग्रेडों और मकानों की केटेगरियों से होती है , लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि जितना बड़ा ग्रेड , उतना बड़ा इंसान बल्कि अक्सर इसके उलट है।