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निर्लोभ का अर्थ

निर्लोभ अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. अध्याय १६ : देव असुर सम्पदा योगमनुष्य का स्वभाव देवता स्वरुप हो सकता है या असुर जैसा ।देवता स्वभाव मनुष्य -निर्मल हृदय , अहिंसावादी , सत्यवादी , क्रोध रहित , संतुष्ट , निर्लोभ , निश्चल , दयावान , धैर्य पूर्ण होता है ।
  2. अतः वर्णाश्रम के आचार-विचार में रत रहने वाले , निष्कपट , निर्लोभ , सत्यवादी , सभी प्राणियों का हित चाहने वाले , वेद के अनुयायी , बुद्धिमान तथा कृतसंकल्प होकर कर्म करने वाले गुणी जनों के लिए इस व्रत का पालन करना श्रेयस्कर है।
  3. अतः वर्णाश्रम के आचार-विचार में रत रहने वाले , निष्कपट , निर्लोभ , सत्यवादी , सभी प्राणियों का हित चाहने वाले , वेद के अनुयायी , बुद्धिमान तथा कृतसंकल्प होकर कर्म करने वाले गुणी जनों के लिए इस व्रत का पालन करना श्रेयस्कर है।
  4. यदि इस प्रचण्ड मानसिक पवित्रता , उदार भावनाओं और मनःशांति का महत्त्व समझ लिया जाय और निःस्वार्थ निर्लोभ एवं निर्विकारिता द्वारा उसको सुरक्षित रखने का प्रयत्न कर लिया जाय , तो मानसिक विकास के क्षेत्र में बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता है।
  5. जब बात चली है सुविचारों की , तो अभिषेक प्रसाद की कविता में ये सुविचार तो हम आप सब पर शत प्रतिशत लागू होते हैं - यहाँ देखिये मेरी नजर से एक बच्चा खेल रहा है कितना कोमल, निर्मल, निर्लोभ, निश्छल किसी से ईर्ष्या नहीं कोई द्वेष नहीं कोई
  6. निर्लोभ रह देते रहे सब , न कुछ अभिलाषा रही पात्र जीवन मे सफल हो शायद यही आशा रही आपके ऋण से उऋण किसी हाल हो सकते नहीं कुछ शब्द मे अनुसंशा कर जज़्बात कह सकते नहीं गुरुवर मेरे सिर पर पुनः आशीषमय कर रख दीजिये “दीपक “जले सूरज जैसा इतना प्रकाश भर दीजिये !
  7. निर्लोभ रह देते रहे सब , न कुछ अभिलाषा रही पात्र जीवन मे सफल हो शायद यही आशा रही आपके ऋण से उऋण किसी हाल हो सकते नहीं कुछ शब्द मे अनुसंशा कर जज़्बात कह सकते नहीं गुरुवर मेरे सिर पर पुनः आशीषमय कर रख दीजिये “ दीपक “ जले सूरज जैसा इतना प्रकाश भर दीजिये
  8. बाधक आँधियाँ ध्यान हेतु सबसे बड़ी जरूरत है- संयत चित्तज् एवं वह भी आत्मनि अवतिष्ठतेज् हो- परमात्मा में लगा हुआ हो तथा सभी प्रकार के काम्य विषयों के प्रति वह पूर्णतः वासनारहित , आसक्तिरहित ( निस्पृह ) हो , निर्लोभ हो , तभी उस व्यक्ति के ध्यानयोग में प्रवृत्त होने की बात कही जा सकती है।
  9. बाधक आँधियाँ ध्यान हेतु सबसे बड़ी जरूरत है- संयत चित्तज् एवं वह भी आत्मनि अवतिष्ठतेज् हो- परमात्मा में लगा हुआ हो तथा सभी प्रकार के काम्य विषयों के प्रति वह पूर्णतः वासनारहित , आसक्तिरहित ( निस्पृह ) हो , निर्लोभ हो , तभी उस व्यक्ति के ध्यानयोग में प्रवृत्त होने की बात कही जा सकती है।
  10. एक ओर जहाँ हम अपने धर्म और संस्कृति के इन शाश्वत मूल्यों की मात्र जुबानी गर्वोक्ति से ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री करने की दुष्प्रवृत्ति के शिकार है , वही दुनिया का यह सबसे सफल और धनी अप्रैल फूल यानी मूर्ख बनाने का बारह मासी त्यौहार निर्लोभ मूर्ख बनाने की प्रथाएक अप्रैल को अब मूर्ख दिवस कहने की परम्परा पर थोड़ा गौर फरमाने की जरूरत है।
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