नोना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इज ए रिटर्न टू केवमेन लाइफ स्टाइल दी न्यू हेल्थ सीक्रेट ? नोना वालिया फाइंड्स आउट . टाइम्स न्यूज़ नेट वर्क / नोना . वालिया @ टाइम्स ग्रुप . कोम / टाइम्स लाइफ / सन्डे , फरवरी २ ० , २ ० ११ , पृष्ठ ४ ) ।
- इस तरह लल्ला बाबा हमलोगों के लिये वह खिड़की थे जो उस दुनिया की तरफ खुलती थी जो हमलोगों के लिये शायद निषिद्ध थी लेकिन लल्ला के स्वागत के लिये हमेशा पलक-पाँवड़े बिछाकर तैयार रहती थी . हम उत्सुकतापूर्वक उनसे सुनते थे कि किस प्रकार नोना ने हाथ घुमाकर बम चलाया और पुलिस के आते ही बहादुरीपूर्वक छिप गया था.
- जहां हमारे समाज में लड़की के पैदा होने पर उसे बोझ माना जाता है और कई बार तो लड़की को अपनी जान गंवाकर इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है | वहीं , जौनपुर के ढेरापुर , कुल्ह्नामाऊ में नोना समाज में इस परंपरा से अलग एक परंपरा है , लड़की की शादी होने पर लड़के वाले विवाह के खर्च की सारी जिम्मेदारी उठाते हैं |
- नोना समाज की यह अनोखी परंपरा उन लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती है जो दहेज़ के लिए अपनी बहुओं को दर्दनाक मौत दे देते हैं | इस समाज की खास बात यह है कि यह लोग बेटी के पैदा होने पर आंसू बहाने की बजाये खुशियां मनाते हैं | इसके साथ ही यहां की महिलाओं को एक खास ओहदा भी मिला हुआ है |
- ये तो कहानी बिल्कुल ग़लत है क्योंकि इसमे तेनाली राम एक हस्या कवि थे जो की राजा कृिशणदेव के यहा आठ दिग्गोज़ो मे एक थे इतना बारे ओहदे पेर होने के बाओजूद उन्होने इस तरह का घी नोना काम किए ? इस्ससे मालूम परटा है की उस समय के लोग कैसे होंगे जो की अपना काम निकालने के लिए किसी निर्दोष आत्मा की जान तक ले लेते थे ....
- अगर देखा जाए तो नोना समाज की यह परम्परा काफी सराहनीय है क्योंकि इससे लड़कियों में किसी भी तरह के डर की भावना खत्म हो जाती है और वह खुलकर अपनी जिंदगी को अपने मन मुताबिक जी सकती है | बहरहाल , हम लोगों को इस परंपरा से सीख लेनी चाहिए कि बेटियां बोझ नहीं होती बल्कि हमे यह समझना होगा की हमारा आने वाला कल उन्ही के ऊपर आश्रित है |
- जौनपुर | भारत में शादियों के दौरान कन्या पक्ष से दहेज़ लेने की परम्परा सदियों से चली आ रही है | पहले दहेज़ का रूप तोहफा हुआ करता था लेकिन अब उन तोहफों ने दहेज़ का रूप धारण कर लिया है | यह जानकार आपको आश्चर्य होगा कि भारत के जौनपुर में कुछ गाँव ऐसे हैं जहाँ पर रहने वाले नोना जाति में वर पक्ष से दहेज़ लेने का रिवाज़ है जो सदियों से चला आ रहा है |
- उसी वर्ष अगस्त में कजान यूनिवर्सिटी में कानून के अध्ययन के लिये प्रवेश , 16 वर्ष की अवस्था में कार्ल माक्र्स की ‘ पूँजी ' का अध्ययन , दिसम्बर 1887 में तानाशाही विरोधी छात्रों की सभा और प्रदर्शन में भाग लेने के कारण गिरफ़्तारी - सिपाही ने पूछा , “ नौजवान , तुम दीवार से सिर टकराकर क्यों आफत मोल ले रहे हो ? ” सत्रह वर्ष के ब्लादिमिर ने कहा , ‘‘ दीवार है , लेकिन नोना लगी हुई , जरा-सा धक्का देते ही धराशायी हो जायेगी।