न्यायदर्शन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मनुस्मृति में इस त्रसरेणु का लक्षण किया गया है , जो न्यायदर्शन के अनुकूल है-
- न्यायदर्शन में प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान और शब्द - ये चार प्रमाण माने गए हैं।
- समस्त दार्शनिक , धार्मिक तथा व्यावहारिक ऊहापोह का नियमन न्यायदर्शन के सिद्धान्तों के द्वारा ही होता है।
- वात्स्यायन ने न्यायदर्शन प्रथम सूत्र के भाष्य में “प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्याय” कह कर यही भाव व्यक्त किया है।
- प्राचीन ग्रन्थ शास्त्रों में किन्हीं-किन्हीं स्थानों में गौतम तथा कहीं-कहीं अक्षपाद को न्यायदर्शन का रचयिता कहा गया है।
- प्राचीन ग्रन्थ शास्त्रों में किन्हीं-किन्हीं स्थानों में गौतम तथा कहीं-कहीं अक्षपाद को न्यायदर्शन का रचयिता कहा गया है।
- प्राचीन ग्रन्थ शास्त्रों में किन्हीं-किन्हीं स्थानों में गौतम तथा कहीं-कहीं अक्षपाद को न्यायदर्शन का रचयिता कहा गया है।
- बाहरवीं शताब्दी के बाद तो , तथाकथित नव्यन्याय के प्रवर्तन के बाद, न्यायदर्शन पूर्णतया प्रमाण मीमांसा में समाहित हो गया।
- इसलिए न्यायदर्शन में इनका पृथक् विचार नहीं है , किंतु वैशेषिक दर्शन में तो मुख्य रूप से इनका विचार है।
- बाहरवीं शताब्दी के बाद तो , तथाकथित नव्यन्याय के प्रवर्तन के बाद, न्यायदर्शन पूर्णतया प्रमाण मीमांसा में समाहित हो गया।