पंचतत्त्व का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- परमात्मा में इच्छा उठी ‘ एकोऽहं बहुस्याम ' मैं अकेला हूँ - बहुत हो जाऊँ , उस संकल्प के फलस्वरूप तीन गुण , पंचतत्त्व उपजे और सारा संसार बनकर तैयार हो गया।
- परमात्मा में इच्छा उठी ‘ एकोऽहं बहुस्याम ' मैं अकेला हूँ - बहुत हो जाऊँ , उस संकल्प के फलस्वरूप तीन गुण , पंचतत्त्व उपजे और सारा संसार बनकर तैयार हो गया।
- भारत में उनके आवास की व्यवस्था हो चुकी थी , पर देश की आज़ादी का यह फ़कीर 4 मार्च, 1939 ई. को कुर्सी पर बैठा-बैठा विदेश में ही सदा के लिए पंचतत्त्व में विलीन हो गया।
- १९८० एवं ९० के दशक में लखनऊ में उभरते साहित्यकारों- विशेषकर कवियों को एकजुट कर नवोदित साहित्यकार परिषद नामक एक मंच प्रदान करनेवाले रामनारायण त्रिपाठी पर्यटक आज ३० जनवरी २०१२ को पंचतत्त्व में विलीन हो गए।
- कपिलदेव पंचतत्व का विज्ञापन कर रहे हैं , ये पंचतत्त्व क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा अर्थात धरती, पानी, आग, आसमान और हवा अर्थात पर्यावरण की चिंता के नहीं बल्कि बिल्डिंग बेचने के लिए इन पांचों तत्वों की बर्बादी में सहभागिता है।
- पर्यटक जी को अंतिम प्रणामः १९८० एवं ९० के दशक में लखनऊ में उभरते साहित्यकारों- विशेषकर कवियों को एकजुट कर नवोदित साहित्यकार परिषद नामक एक मंच प्रदान करनेवाले रामनारायण त्रिपाठी पर्यटक आज ३० जनवरी २०१२ को पंचतत्त्व में विलीन हो गए।
- रेत नहीं रेत लोहा , लोहा अब नहीं और चूना और मिट्टी हो रहे मुक्त शिल्प और तकनीकी के बंधन से पंचतत्त्व लौट रहे घर अपने धम् म. .. धम् म. .. धम् म. .. धम् म. .. धम् म. .. धड़ाम
- १ ९ ८ ० एवं ९ ० के दशक में लखनऊ में उभरते साहित्यकारों- विशेषकर कवियों को एकजुट कर नवोदित साहित्यकार परिषद नामक एक मंच प्रदान करनेवाले रामनारायण त्रिपाठी पर्यटक आज ३ ० जनवरी २ ० १ २ को पंचतत्त्व में विलीन हो गए।
- जिसके द्वारा यह समस्त जगत सदैव व्याप्त रहता है , जो ज्ञान-स्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, काल का भी काल और सर्वगुणसम्पन्न अविनाशी है, जिसके अनुशासन में यह सम्पूर्ण कर्मचक्र सतत घूमता रहता है, सभी पंचतत्त्व जिसके संकेत पर क्रियाशील रहते हैं, उसी परब्रह्म परमात्मा का सदैव ध्यान करना चाहिए।
- जीव आत्मा गुण कर्म रूप द्वारा अनेक वृतियों से बंधा होता है जीवात्मा , जन्म-मृत्यु कर्म के अनुरूप पाता है जिसके द्वारा यह समस्त जगत सदैव व्याप्त रहता है , उस परमपिता के अनुशासन में यह संपूर्ण कर्मचक्र सतत घूमता रहता है , सभी पंचतत्त्व जिसके संकेत पर क्रियाशील रहते हैं , उसी परब्रह्म परमात्मा का सदैव ध्यान करना चाहि ए.