पदतल का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हर संध् या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है इसकी छाया में रंग गहरा है देश हरा , प्रदेश हरा हर मौसम है , संदेश भरा इसका पदतल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है
- पहले अविभाजित बिहार , बंगाल , बंग्लादेश और उड़ीसा , जो सूबे-बंगाल कहलाता था , की राजधानी बनने का गौरव जिस संताल परगना के राजमहल को था , उसी संताल परगना की धरती को अंग्रेजी शासन के दौरान बंगाल प्रांत के पदतल में पटक दिया गया।
- जलयात्रा पर हूँ एक दूसरे अंतरिक्ष की ओर उठ रहा हूँ गर्द - गुबार से भूल रहा हूँ अपना नाम भूल रहा हूँ वनस्पतियों की संज्ञा वृक्षों का इतिहास उड़ान भर रहा हूँ सूर्य से वहाँ की ऊब थकाने लगी है अब भाग रहा हूँ नगरों- बस्तियों से शताब्दियाँ बीत गईं सोया नहीं चंद्रमा के पदतल में।
- एक एड़ी गांठ एक की हड्डी कि असामान्य वृद्धि है , यह पैर के तलवे और हड्डी के मिलने के स्थान पर होती हे | यह पदतल के चर्म पर और पैर की मांसपेशियों पर लंबे समय तक तनाव के कारण , विशेष रूप से मोटे लोगों में , धावक या कसरत के लिये दौडने वाले में होती है।
- सत्य धाम यात्रा पर करता नमन राष्ट्र यह सारा ! श्रद्धा सुमन समर्पित पदतल कोटि प्रणाम हमारा !श्रीलाल शुक्ल जी को समर्पित दैनिक जनसंदेश टाइम्स के 29 अक्टूबर 2011 के अंक में प्रकाशित प्रथम पेज समाचार और विशेष सामग्री अविनाश वाचस्पति की प्रस्तुति नुक्कड़ पर पहली दीवाली और घर की सफाईन दैन्यं न पलायनम् दीवाली के पहले की एक परम्परा होती है, घर की साफ़ सफाई।
- बंदूक द्वारा गोली चलाने का चरण ; ( राउंड ) 10 . ( हठयोग ) शरीर में विशिष्ट सात स्थान जिन्हें साधना के दौरान साधक की कुंडलिनी पार करती है- मूलाधार , स्वाधिष्ठान , मणिपूर , अनाहत , विशुद्ध , आज्ञा और सहस्त्रार 11 . हथेलियों और पदतल की वृत्ताकार रेखाएँ 12 . साज़िश ; छल ; षड्यंत्र 13 . ( ज्योतिष ) मीन , मेष , तुला आदि बारह राशियों का समूह।
- PMसच लिखा बोधिसत्त्व जी ने कि न केवल स्त्री बल्कि उनका मन भी धराउ होता है . ...अपनी कविता “राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल”की ये पंक्तियाँ सहज ही याद आ गईँ....मार्मिक कविता - वह तो सुगंध की तरह थी अनियंत्रित....हॉं लड़की पराया धन ही होती हैपर साहूकार के घर के लिए सुरक्षित धनप्रेम रचाने के लिए उत्सुक मन नहींपर यहाँ तो देह का आकर्षण खड़ा था साक्षातसभा को तो देव का आकर्षण भी मंजूर न थाक्योंकि सभा जानती हैकि प्रेम देह से हो,