पनवारी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- पंसारी के दूकान मे , पनवारी के पान मे, मोची के जूते मे, गाय के खूटे मे, महीने के राशन मे, नेता के भाषण मे, पंडित के झोली मे, बोली ठिठोली मे, फिल्म की कहानी मे, रात मच्छरदानी मे, झूठे अस्वासन मे,अपनो के शासन मे, परीक्षा के प्रश्नो मे, साधू के वचनो मे, द
- पंसारी के दूकान मे , पनवारी के पान मे, मोची के जूते मे, गाय के खूटे मे, महीने के राशन मे, नेता के भाषण मे, पंडित के झोली मे, बोली ठिठोली मे, फिल्म की कहानी मे, रात मच्छरदानी मे, झूठे अस्वासन मे,अपनो के शासन मे, परीक्षा के प्रश्नो मे, साधू के वचनो मे, द
- पंसारी के दूकान मे , पनवारी के पान मे, मोची के जूते मे, गाय के खूटे मे, महीने के राशन मे, नेता के भाषण मे, पंडित के झोली मे, बोली ठिठोली मे, फिल्म की कहानी मे, रात मच्छरदानी मे, झूठे अस्वासन मे,अपनो के शासन मे, परीक्षा के प्रश्नो मे, साधू के वचनो मे, द...
- पंसारी के दूकान मे , पनवारी के पान मे, मोची के जूते मे, गाय के खूटे मे, महीने के राशन मे, नेता के भाषण मे, पंडित के झोली मे, बोली ठिठोली मे, फिल्म की कहानी मे, रात मच्छरदानी मे, झूठे अस्वासन मे,अपनो के शासन मे, परीक्षा के प्रश्नो मे, साधू के वचनो मे, द...
- बीबीसी हिंदी ने अपनी रिपोर्टिंग मैं बताया कि जंतर-मंतर में बेशर्मी मोर्चा प्रदर्शन के ठीक बगल में ही सड़के के किनारे पनवारी लाल और सुमन ने एक छोटा सा झोपड़ा खड़ा किया है , जहाँ पिछले कुछ महीनों से वो अपनी छह साल से गायब बेटी लक्ष्मी को ढूँढ़ने के लिए प्रशासन के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं.
- . .. सिर्फ व्यवस्था को लानत-मनालत भेजने से काम चलने वाला नहीं है, जन-हितैषी नितीया लागू कराने के लिये हमारे हुक्मरानों (सिर्फ सरकार ही नहीं वरन समस्त शासक वर्ग) को किस तरह विवश किया जाये इस विषय पर जोरदार बहस चलायी जाना चाहिये, इस बहस से एक पनवारी या ठेला चलाने वाला बचा रह सकता है, पर पत्रकार-बुद्धिजीवी-समाजशास्त्री-राजनितिज्ञ ही अगर इससे कन्नी काटने लगे तो बचाखुचा लोकतंत्र भी खत्म हुआ समझो।
- . .. सिर्फ व्यवस्था को लानत-मनालत भेजने से काम चलने वाला नहीं है , जन-हितैषी नितीया लागू कराने के लिये हमारे हुक्मरानों ( सिर्फ सरकार ही नहीं वरन समस्त शासक वर्ग ) को किस तरह विवश किया जाये इस विषय पर जोरदार बहस चलायी जाना चाहिये , इस बहस से एक पनवारी या ठेला चलाने वाला बचा रह सकता है , पर पत्रकार-बुद्धिजीवी-समाजशास्त्री-राजनितिज्ञ ही अगर इससे कन्नी काटने लगे तो बचाखुचा लोकतंत्र भी खत्म हुआ समझो।
- “ ए लो तुमको किसने कहा की महान लोग होते है | किसी का भी नाम ले लो जो तुम्हारी तरह सोचते है | चाहे पनवारी का नाम लो चाहे बनवारी का चाहे ट्रक के पीछे लिखे इबारत का ही लिंक दे दो बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला | जो तुम्हारी तरह सोचे वो सब महान तुम्हारी तरह विद्वान | पर एक बात बताइए घिसु जी कब से आप बहस करने पर बहस करते जा रहे है पर जिस बात पर बहस करनी है उसपे क्यों नहीं करते है |”
- मुझे तो और भी ढूँढ कर साहित्यिक संदेश भेजते हैं और अपेक्षा करते हैं जब मैने पनवारी , पास चारी , दुरा चारी , करम चारी , अधिक आरी , सूखा मेवा , भुना बैगन आदि आदि होकर भी इतनी बड़ी बात लिख डाली तो तुम तो कवि हो ! साहित्य की पूँछ हो ! तुम तो जरूर इससे बढ़िया बधाई संदेश भेजोगे ! लोग इतने मासूम होते हैं कि दुष्यंत कुमार के फड़कते शेर के बदले उससे भी धड़कते शेर लिखने की मुझ नाचीज से अपेक्षा करते हैं ! अब उन्हें कौन समझाये कि बलागिया कवि हूँ।