पांचाल देश का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसमें पांचों पांडवों का जन्म , दुर्योध्न द्वारा निकाला जाना , पांचाल देश पहुंचकर द्रोपदी स्वयंवर , नागकन्या से विवाह , महाभारत युद्ध बावन व्यूह की रचना राज्याभिषेक , स्वर्गारोहण आदि सभी लोक कथाओं के अनुसार सुनाई जाती है।
- इसमें पांचों पांडवों का जन्म , दुर्योध्न द्वारा निकाला जाना , पांचाल देश पहुंचकर द्रोपदी स्वयंवर , नागकन्या से विवाह , महाभारत युद्ध बावन व्यूह की रचना राज्याभिषेक , स्वर्गारोहण आदि सभी लोक कथाओं के अनुसार सुनाई जाती है।
- द्रुपद और द्रोण की मित्रता इतनी घनिष्ठ थी कि द्रुपद ने द्रोण से कहा था , ‘‘ जब मैं पांचाल देश के राजसिंहासन पर बैठूँगा , तो अपना आधा राज्य तुम्हें दे दूँगा , ताकि हमारी मित्रता अविच्छिन्न रहे।
- वशिष्ठ जी की आज्ञा पाकर चारों दूत वायु का समान वेगवान घोड़ों पर सवार हो मालिनी नदी पार कर हस्तिनापुर होते हुये पांचाल देश पहुँचे और वहाँ से शरदण्डा नदी पार करके इक्षुमती नदी पार करते हुये वाह्लीक देश पहुँचे।
- सभी शिष्यों का एक ही उत्तर था , “ गुरुवर्य , मैं अकेला द्रुपद को बंदी बनाकर कैसे ला सकता हूं ? वह पांचाल देश का नृपति है | उसके पास सेना है , सिपाही हैं , अस्त्र-शस्त्र हैं | ”
- ऐसा मालूम होता है कि उपनिषदकाल में जो-- हमारी दृष्टिसे जैन बोद्ध धर्मोदय काल से एकाध शताब्दी पूर्वही था-- जनक की कीर्ति अच्छी तरह देश-देशान्तरो में फैल चुकी थी कौशल औरकुरू पांचाल देश के अनेक विद्वान ब्रह्मदेवता राजा जनक की सभा में आकरब्रह्मवाद पर तर्क किया करते थे .
- अपरताल पर्वत - प्रलम्बगिरि के मध्य से बहने वाली मालिनी नदी का तट - हस्तिनापुर - गंगा पार कर - पश्चिम की ओर पांचाल देश - कुरूजागंल - शारदा नदी का तट - तेजाभिभवन नामक ग्राम - अभिकाल नामक ग्राम - वाह्वीक देश - गिरिव्रज नगर ( भरत की ननिहाल )
- क्या करना चाहिए ? धन और यश के लिए किस ओर जाना चाहिए ? द्रोणाचार्य को पांचाल नरेश द्रुपद याद आया | विद्यार्थी अवस्था में द्रुपद और उन्होंने एक ही गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की थी | द्रोणाचार्य आशाओं के रथ पर सवार होकर पांचाल देश की राजधानी की ओर चल पड़े | मार्ग में बड़े-बड़े कष्ट उठाए , पर धन मिलने की आशा में वे कष्ट भी उन्हें सुखदायी मालूम हुए |
- द्रोणाचार्य ने द्रुपद की ओर देखा | उसका मस्तक झुका हुआ था | द्रोणाचार्य बोले , “ हां , बेटा अर्जुन ! यही है पांचाल देश के नृपति द्रुपद ! इन्होंने ही एक दिन मेरी गरीबी का उपहास किया था | यह मेरे विद्यार्थी जीवन के साथी हैं , पर इन्होंने ही कहा था , मैं तो तुम्हें पहचानता ही नहीं | तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है | तुम्हारी कीर्ति युग-युगों तक अक्षय और अमर बनी रहेगी | ”