पातंजल का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- पातंजल योगदर्शन : व्यासभाष्य, उसका हिन्दी अनुवाद एवं सुविशद व्याख्या (गूगल पुस्तक ; व्याख्याकर - हरिहरानन्द आचार्य)
- पातंजल योग दर्शन में कहा है - अपरिगृहस्थैय्रे पूर्वजन्मकथंतासंबोध : ( साधनपाद- 39 ) अर्थात अपरि ग. ..
- पातंजल योगदर्शन में विवृत्त अष्टांगयोग में आसन का स्थान तृतीय एवं गोरक्षनाथादि द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग में प्रथम है।
- तप : श्रुताभ्यां मोहीनो जाति ब्राह्मण एव स : ' ( पातंजल महाभाष्य : 5 । 1 ।
- पातंजल योगदर्शन में विवृत्त अष्टांगयोग में आसन का स्थान तृतीय एवं गोरक्षनाथादि द्वारा प्रवर्तित षडंगयोग में प्रथम है।
- ऋषि पतंजलि ने पातंजल योगदर्शन के द्वितीय सूत्र में योगसाधना की सार कथा कही है , “ योगश्चित्तवृत्तिः निरोधः ” ।
- आजकल इस शब्द का रूढ़ार्थ ' प्राणायाम आदि साधनों से चित्त-वृत्तियों या इन्द्रियों का निरोध करना', अथवा 'पातंजल सूत्रोक्त समाधि या ध्यानयोग' है।
- पातंजल योग दर्शन की साधना ज्ञान मार्ग की है , उसमें समाधि के माध्यम से चिदंश साक्षात्कार की विधि बतलाई गई है।
- पातंजल योगदर्शन ( २.५) के अनुसार अनित्य, अशुचि, दु:ख तथा अनांत्म विषय पर क्रमश: नित्य, शुचि सुख और आत्मस्वरूपता की ख्याति ‘अविद्या' है।
- आश्रम द्वारा ' पातंजल योगविज्ञान ' अनुरूप अनेक तालिमबध्द प्रशिक्षकों के द्बारा सैकड़ों शिबिरों के माध्यम से विद्यार्थियों को मार्गदर्शन दिया जा रहा है