पूग का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कात्यायन ने श्रेणि , पूग , गण , व्रात , निगम तथा संघ आदि को वर्ग अथवा समूह माना है .1 लेकिन आचार्य काणे उनकी इस व्याख्या से सहमत नहीं थे .
- पाणिनि ने व्रात और पूग इन संज्ञाओं से बताया है कि इनमें से बहुत से कबीले उत्सेधजीवी या लूटपाट करके जीवन बिताते थे जो आज भी वहाँ के जीवन की सच्चाई है।
- 6 पूग संभवतः ऐसे व्यक्तियों का संगठन होता था , जिनका पैत्रिक व्यवसाय युद्ध अथवा सेवाकर्म था ; अर्थात ऐसे लोग जो वर्ण-विभाजन की दृष्टि से वाणिज्यकर्म के लिए अधिकृत नहीं थे .
- इस बात की भी पर्याप्त संभावना है कि वाणिज्यिक अनुभव की कमी तथा शिल्पकलाओं के ज्ञान के अभाव में शूद्रवर्ग एवं सेना से निकाले गए लोगों के संगठन को पूग माना गया हो .
- उनके अनुसार पूग अथवा पणि जैसे वैदिक वांङमय में आए शब्द गिल्ड के पर्याय नहीं हैं , न श्रेष्ठि अथवा श्रेणी-प्रमुख तथा गिल्ड के अध्यक्ष के पद को परस्पर समानार्थी मानना उचित होगा .
- इससे कुछ विभिन्न विक्रमादित्य खन्ना ने किरन कुमार थपल्याल एवं मजुमदार के हवाले से एक ही परिक्षेत्र में रहने वाले , आर्थिक हितों के लिए प्रयासरत , समूह को व्रात्य एवं पूग की संज्ञा दी है .
- दूसरी ओर यह भी सच है कि पूग , व्रात्य , निगम , श्रेणि इत्यादि विभिन्न नामों से पुकारे जाने के बावजूद सहयोगाधारित संगठनों के बीच उनके कार्यकलापों अथवा श्रेणिधर्म के आधार पर कोई स्पष्ट सीमारेखा नहीं थी .
- पूग ( सं . ) [ सं-पु . ] 1 . सुपारी का पेड़ या फल 2 . कटहल 3 . शहतूत का पेड़ 4 . किसी विशेष कार्य या व्यापार के लिए बना हुआ संघ 5 . समूह ; ढेर।
- इन संगठनों के लिए यद्यपि पूग , नैगम, व्रात्य, पाणि, गण आदि संज्ञाएं भी प्राचीनकाल से चली आ रही थीं, विद्वानों ने उनके बीच के सैद्धांतिक अंतर स्पष्ट करने का प्रयास भी किया है, तथापि ऐसे संगठनों के श्रेणि शब्द का प्रचलन ही सर्वाधिक रहा.
- उनमें से कुछ आयुध के सहारे अपनी आजीविका चलाने वाली थीं , तो कुछ की आजीविका का माध्यम कृषि था- पूग एक स्थान की विभिन्न जातियों एवं विभिन्न व्यवसाय वाले लोगों का समुदाय है और श्रेणि विभिन्न जातियों के लोगों का समुदाय है-जैसे हेलाबुकों, तांबूलिकों, कुविंदों (जुलाहों) एवं चर्मकारों की श्रेणियां.