पूज्यता का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- समाज पर नियंत्रण करने के प्रयासों को राजनीति कर्म कहा जाता है पर देखा जाये तो हर मनुष्य कहीं न कहीं पूज्यता को बोध से ग्रसित रहता है और कहीं न कहीं वह ऐसे प्रयास करता है जिससे समाज में उसका सम्मान बढ़े।
- जबकि कथित लोभी और लालची साधु की कभी तृष्णायें शांत नहीं होती फिर उनको अपनी पूज्यता , सम्मान और शक्ति का भ्रम इस कदर ढीठ बना देता है कि वह अपनी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति के लिये किसी भी सीमा तक चले जाते हैं।
- क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि इस गए-गुजरे जमाने में ब्राह्मणता और पूज्यता का स्वाभिमान दिलानेवाली एकमात्र पुरोहिती ही है और उसी के बिना आपका समाज सुप्त या मृत सिंहवत पड़ा है , जिसके ऊपर आज गीदड़ अपने पाँव की रौंद लगा कर किलकारें करते हैं ?
- भावार्थ : तेज ( श्रेष्ठ पुरुषों की उस शक्ति का नाम ‘ तेज ' है कि जिसके प्रभाव से उनके सामने विषयासक्त और नीच प्रकृति वाले मनुष्य भी प्रायः अन्यायाचरण से रुककर उनके कथनानुसार श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं ) , क्षमा , धैर्य , बाहर की शुद्धि ( गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी देखनी चाहिए ) एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव- ये सब तो हे अर्जुन ! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं॥ 3 ॥