प्रतर्दन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अत : उनके साहस एवं युद्ध कौशल से प्रसन्न हो देवराज इन्द्र प्रतर्दन को वरदान देने की इच्छा व्यक्त करते हैं किंतु प्रतर्दन वरदान में संपूर्ण मानव-जाति का कल्याण मांगते हैं .
- राजा प्रतर्दन को सत्य का आरूढ़ देखकर देवराज इन्द्र ने कहा- ' हे राजन ! तुम मुझे ही , मेरे यथार्थ रूप को जानो ? यही मानव-जाति के लिए श्रेष्ठ वरदान है।
- इस पर प्रतर्दन ने कहा- ' हे देवराज ! जिस श्रेष्ठ वर को आप मानव-जाति के लिए परम कल्याणयुक्त मानते हों , वैसा ही कोई श्रेष्ठ वर आप स्वयं ही मुझे प्रदान करें।
- कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद के तीसरे अध्याय में इन्द्र तथा प्रतर्दन के मध्य होने वाले संवादों को आधार बनाया गया है जिसके द्वारा वह जीवन के महत्वपूर्ण सोपानों का उल्लेख करते हुए प्रतीत होते हैं .
- देवराज के इस कथन में प्रतर्दन ने पहचाना कि इन्द्र ने न जाने कितने पथभ्रष्ट असुरों और ऋषि-मुनियों को दण्ड दिया , पर अहंकारविहीन और निष्कामी होने के कारण इन्द्र का बाल भी बांका नहीं हुआ।
- देवराज के इस कथन में प्रतर्दन ने पहचाना कि इन्द्र ने न जाने कितने पथभ्रष्ट असुरों और ऋषि-मुनियों को दण्ड दिया , पर अहंकारविहीन और निष्कामी होने के कारण इन्द्र का बाल भी बांका नहीं हुआ।
- ' देवराज के इस कथन में प्रतर्दन ने पहचाना कि इन्द्र ने न जाने कितने पथभ्रष्ट असुरों और ऋषि-मुनियों को दण्ड दिया , पर अहंकारविहीन और निष्कामी होने के कारण इन्द्र का बाल भी बांका नहीं हुआ।
- इस बात को सुनकर इंद्र एक पल के लिए सोच में पड़ जाते हैं और दूसरे ही क्षण प्रतर्दन से इस ऎसे वर को माँगने के लिए आग्रह करते हैं जो केवल उनके हित के लिए हो .
- एक बार जब देवताओं एवं असुरों के मध्य युद्ध होता है तब देवों की साहयता के लिए राजा दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन आगे आते हैं तथा स्वर्गलोक पहुँच कर इस संग्राम में उनकी ओर से लड़ते है .
- वैवस्वत मनु से महाभारत तक के काल को वैदिक युग कहा गया है जिसमें ऋषिगण गृत्समद , वामदेव, विश्वमित्र, भारद्वाज, अत्रि, वशिष्ट, शिवि, प्रतर्दन, लोपामुद्रा, देवापि आदि रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर रचनाओं का निर्माण कर भारतीय साहित्य को पोषित किया।