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प्रोक्ति का अर्थ

प्रोक्ति अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. इस प्रारूप के अनुसार कथाभाषा विश्लेषण के आठ आयाम हैं-वैयक्तिकता , बोली , काल / समय , प्रोक्ति ( वाकलेखन के स्तर पर-विवरणात्मक सूचना , अनौपचारिक वार्तालाप , भाषिक-भाषेतर मिश्रण के स्तर , एकालाप , वार्तालाप ) , वार्तासीमा , पद , प्रकारता तथा अतिवैयक्तिकता .
  2. इस प्रारूप के अनुसार कथाभाषा विश्लेषण के आठ आयाम हैं-वैयक्तिकता , बोली , काल / समय , प्रोक्ति ( वाकलेखन के स्तर पर-विवरणात्मक सूचना , अनौपचारिक वार्तालाप , भाषिक-भाषेतर मिश्रण के स्तर , एकालाप , वार्तालाप ) , वार्तासीमा , पद , प्रकारता तथा अतिवैयक्तिकता .
  3. “ रचना , ऐसे शैलीगत प्रयोग को भाषाविज्ञान / समाज भाषा विज्ञान प्रोक्ति कहता है : जिसे ” वाक्य पदीयम “ ने ” महावाक्य “ की संज्ञा दी है , ” ' बस यहीं तो मात खा गये हम -हिन्दी साहित्य के आधिकारिक श्रोता भी तो नहीं ..
  4. कोश के अनुसार प्रोक्ति के अर्थ हैं- विचारों का संप्रेषण ( Communication of ideas ) , वार्तालाप ( Conversation ) , सूचना ( Information ) , विशेषतः बातचीत द्वारा , भाषण , एक औपचारिक एवम् व्यवस्थित लेख ( Article ) और किसी विषय का विस्तृत और औपचारिक विवेचन।
  5. शीर्षक किसी का कोटेशन नहीं है | रचना ! ऐसे शैलीगत प्रयोग को भाषाविज्ञान / समाज भाषाविज्ञान प्रोक्ति कहता है ; जिसे “ वाक्य पदीयम् ” ने ‘ महावाक्य ' की संज्ञा दी है | किसी सच्चे और खरे भाषा-वैज्ञानिक / शैली वैज्ञानिक से पूरी जानकारी मिल सकती है |
  6. उसके माध्यम से निरूपित शब्दों के अर्थ , भाव, बिम्ब, प्रोक्ति, उद्देश्य और प्रेरणा कभी स्याह नहीं होते हैं।” सारतः अपने अग्रज-पत्रकारों से इस बारे में सूक्ष्म एवं बारीक विश्लेषण की अपेक्षा बेमानी नहीं है जो दुध का दुध और पानी का पानी अलग कर इस परोक्ष आपातकाल की त्रासद दौर से मुक्ति दिला सकते है।
  7. कविता हो या गद्य की कोई भी विधा , उसके पाठ में व्याकरण , अर्थ , शैली , सामाजिक संदर्भ और प्रोक्ति जैसे विविध स्तरों पर जहाँ कहीं भी सौंदर्य निहित है , वे निष्ठापूर्वक उसका अनुसंधान और उद्घाटन करते हैं और कई बार तो पाठक को इन उपलब्धियों के द्वारा चमत्कृत कर देते हैं।
  8. सभी नाटकों में किसी एक स्थल पर भाषण की प्रोक्ति का भी प्रयोग किया गया है , लेकिन उसके लिए ऐसे स्थल का चयन किया गया है कि घटनाओं के तनाव से उत्पन्न वातावरण में ये भाषण तनिक भी बोझिल प्रतीत नहीं होते और नाटककार सहजता से अपने अभिप्रेत को प्रेक्षक के मस्तिष्क में बोने में सफल हो जाता है।
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