बयाबान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ( 655) अगर इंसान आबादी में हो तो ज़रुरी है कि वुज़ू और ग़ुस्ल के लिए पानी को इस हद तक तलाश करे कि उसके मिलने से नाउम्मीद हो जाये और अगर बयाबान में हो तो ज़रुरी है कि रास्तों में या अपने ठहरने की ज़गह पर या उसके आस पास वाली जगहों पर पानी तलाश करे।
- जब हम तुम नज़दीक नहीं तो- होता है सांचा अभिसार ! ! एहसासों के बंधन को , ……… !! *********** न तुम भटको न मैं अटकूं , चिंता के इस बयाबान में एक कसम हम दौनों ले लें-रहें हमेशा एक ध्यान में ! प्रीत प्रियतम एक पावन पूजा , न तो तिज़ारत न व्यापार एहसासों के बंधन को , ……… !! ***********
- दर्द से भींगती रहीं आँखें , परवाह न किया हाथ रखा सीने पर, फिर भी आह न किया यूँ तो मुझसे भी हँसकर मिली थी ख़ुशी दो पल से मगर ज्यादा निबाह न किया सूखी धरती, बंजर सपने, बयाबान दिल मेरी तरह किसी ने जिंदगी तबाह न किया मुन्तजिर रहकर एक उम्र काट दी मैंने किसी ने मगर, इस तरफ निगाह न किया
- 21 बहमन ( एक ईरानी महीने का नाम ) को इमाम खुमैनी अलैहर्रहमा के हाथों शहनशाही हुकूमत का खात्मा , सन् 1359 हिजरी में तबस के बयाबान में अमेरीकी फ़ौजी हेली कोप्टरों का ज़मीन पर गिरना , सन् 1361 हिजरी में 21 तीर ( ईरानी महीने का नाम ) को नोज़ह नामी बग़ावत की असफलता और इराक से आठ साल की जंग में दुशमन की नाकामी आदि ऐसे नमूने हैं जो इस बात के ज़िन्दा गवाह हैं।
- सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्यू है इस शहर में हर शख्श परेशां सा क्यू है दिल है तो धडकने का बहाना कोई ढूंढे पत्थर की तरह बेहिस-बेजान सा क्यू है तन्हाई की ये कौन सी मंजिल है रफ़िक़ो ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यू है हम ने तो कोई बात निकली नहीं ग़म की वो जूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यू है क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में आईना हमें देख के हैरान सा क्यू है - शहरयार
- नहजुल बलाग़ा में नक़्ल हुआ है कि हज़रत अली ( अ ) ने ख़ुद को उन दरख़्तों की मानिंद कहा है जो बयाबान में रुश्द पाते हैं और बाग़बानों की देख भाल से महरूम रहते हैं लेकिन बहुत मज़बूत होते हैं , वह सख्त आँधियों और तूफ़ानों का सामना करते हैं लिहाज़ा जड़ से नही उखड़ते , जबकि शहर व देहात के नाज़ परवरदा दरख़्त हल्की सी हवा में जड़ से उखड़ जाते हैं और उनकी ज़िन्दगी का ख़ात्मा हो जाता है।
- जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं सुदर्शन फ़ाकिर तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है शहरयार कावे-कावे सख़्तजानी हाय तन्हाई न पूछ सुबह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का ग़ालिब नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहर देखूँ परवीन शाकिर सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले अहमद फ़राज़ regards
- दर्जे = श्रेणी अहतियात = सावधानी हर्फ़ = अक्षर हम ने तो कोई बात निकाली नही ग़म की सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यूँ है इस शेहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंडे पत्थर की तरह बे-हिस-व-बेजान सा क्यूँ है तन्हाई की यह कौनसी मंज़िल है रफ़ीक़ो ता हददे-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है हम ने तो कोई बात निकाली नही ग़म की वह ज़ूद-ऐ-पशीमान , पशीमान सा क्यूँ है क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में आइना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है