बेपरवा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- खोज रहे हो बेपरवा इस-उस के आंचल में सुख घर में शीतल-शबाब है . घर आते ही पढ़ा करो . ! ! वो आंखों में लिये समंदर घूम रहा है गली गली उस मुफ़लिस की आंखो से दुनियां अपनी पढ़ा करो ..
- इस विचार से ढाढ़स बँध जाती , तुरंत चक् कर काट कर डाकिये से पहले दरवाजे पर पहुँच जाते , और बेपरवा से होकर पूछते- '' कहो भाई , हमारा भी पत्र है या नहीं ? '' डाकिया सिर हिलाता और आगे चला जाता।
- जो जन अभियंत्रण में प्रशिक्षित हैं , वे बहुत आसानी से यह समझ सकते हैं कि इस ब्लॉग के अधिकांश लेखों में इंजीनियरिंग पढ़े एक युवा का वही टिपिकल अप्रोच झलकता है - अलहदा, बेपरवा सा लेकिन विजन के साथ ‘टू द प्वाइंट' चोट करता हुआ।
- गीत संगीत : फिल्म में करन कुलकर्णी के गीत और संगीत है लेकिन ऐसी फिल्म में गीतों की गुंजायश नहीं होती फिर भी कुछ गीत हैं जो फिल्म के पाश्र्व में चलते रहते हैं जिनमे मेरी पसंद का गीत है बेपरवा हवा जैसे बोलों वाला गी त.
- जो जन अभियंत्रण में प्रशिक्षित हैं , वे बहुत आसानी से यह समझ सकते हैं कि इस ब्लॉग के अधिकांश लेखों में इंजीनियरिंग पढ़े एक युवा का वही टिपिकल अप्रोच झलकता है - अलहदा , बेपरवा सा लेकिन विजन के साथ ‘ टू द प्वाइंट ' चोट करता हुआ।
- जो जन अभियंत्रण में प्रशिक्षित हैं , वे बहुत आसानी से यह समझ सकते हैं कि इस ब्लॉग के अधिकांश लेखों में इंजीनियरिंग पढ़े एक युवा का वही टिपिकल अप्रोच झलकता है - अलहदा , बेपरवा सा लेकिन विजन के साथ ‘ टू द प्वाइंट ' चोट करता हुआ।
- - जिस तरह की हैं ये दीवारें , यह दर जैसा भी है | सर छिपाने को मौजूद तो है, घर जैसा भी है | उसको मुझसे, मुझको उस्से निस्बतें (अपेक्षाएं) हैं बेशुमार | मेरी चाहत का है वो नगर चाहे जैसा भी है | चल पडा हूँ, शौके - बेपरवा (
- यद्यपि शीराज में उस समय विद्वानों की कमी न थी और बड़े-बड़े विद्यालय स्थापित थे , किन्तु वहा ँ के बादशाह साद बिन जंग़ी को लड़ाई करने की ऐसी ध ु न थी कि वह बहुधा अपनी सेना लेकर एराक पर आक्रमण करने चला जाया करता था और राजकाज की तरफ से बेपरवा हो जाता था।
- इच्छा वासनाओ का पिठठु बनने पर भी निश्चिंत महाराज बैठने की इजाजत ना दे … जब मैं पसीने से तर्बदर हो के आप की खुशामत किया , आप ने देखा तक नहीं … अब मैं वासनाओ का गुलाम नहीं … आप की जहां मर्जी है बैठो ! … चाह गयी मनवा बेपरवा … बिठन तो बैठ … ! '
- ख़ूरेज़ करिश्मा नाज़ सितम ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही . पलकों की झपक पुतली की फिरत सुरमे की घुलावट वैसी ही .बेदर्द सितमगर बेपरवा बेकल चंचल चटकीली सी.दिल सख़्त क़यामत पत्थर सा और बातें नर्म रसीली सी.चेहरे पर हुस्न की गर्मी से हर आन चमकते मोती से .ख़ुशरंग पसीने की बूँदें सौ बार झमकते मोती से.शब्द : नज़ीर अकबराबादीस्वर : छाया गांगुलीधुन : मुज़फ़्फ़र अलीअलबम : 'हुस्न-ए-जाना' / १९९७