बैना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- 5 -जनाब शैख़ सिद्दीक़ हसन ख़ान क़नदूजी ने अपनी किताब “ अलइज़ाअहू लेमा काना वमा यकूना बैना यदेइस साअत ” में लिख़ा हैः इमाम मेहदी ( अ. ) के बारे में मुख़तालिफ़ अंदाज़ से इतनी कसरत से रिवायतें नक़्ल होई हैं जो वाक़ेअन तवातिरे मानवी की हद तक हैं जिस में कोई शक नही कि इमामे मेहदी ( अ. )
- यअ-लमु मा बैना ऐ-दी-हिम वमा ख़ल-फ-हुम ” आम तौर पर शिफ़ाअत करने वाले जिसकी शिफ़ाअत करते हैं उसके बारे में कोई नई बात पेश कर देते हैं लेकिन ख़ुदा के सामने ऐसा कुछ नहीं हो सकता क्यों कि वह शिफ़ाअत करने वालों के बारे में भी जानता है और जिन की शिफ़ाअत की जा रही है उन को भी अच्छी तरह जानता है।
- ( म:) पीछे-पीछे आते हो क्यूँ दिल के चोर मान जाओ वरना मचा दूँगी शोर बचाओ, ओ मुए, ओ मुर्गे, ओ कौवे (पु:) पहले तो बाँधी निगाहों की डोर अब हमसे कहती हो चल पीछा छोड़ ओ गोरी, ओ नटखट, ओ खटपट, ओ पनघट, ओ झटपट (म:) तोरे नैना, ओ मीठे बैना ओ तोरे नैना हाय हाय मीठे बैना ओए होए मुझको बना गए बावरिया आके सीधी...
- ( म:) पीछे-पीछे आते हो क्यूँ दिल के चोर मान जाओ वरना मचा दूँगी शोर बचाओ, ओ मुए, ओ मुर्गे, ओ कौवे (पु:) पहले तो बाँधी निगाहों की डोर अब हमसे कहती हो चल पीछा छोड़ ओ गोरी, ओ नटखट, ओ खटपट, ओ पनघट, ओ झटपट (म:) तोरे नैना, ओ मीठे बैना ओ तोरे नैना हाय हाय मीठे बैना ओए होए मुझको बना गए बावरिया आके सीधी...
- आँखों केपास की झुर्रियां उसकी हंसी को और कोमल कर देती हैं . ..दादी चूड़ा फटकते हुये मुझेएक पुराने गीत का मतलब भी समझाते जा रही है...एक गाँव में ननद भौजाई एक दूसरे कोउलाहना देती हैं कि ‘ बैना ' पूरे गाँव को बांटा री ननदिया खाली मेरे घर नहींभेजा...लेकिन भाभी जानती है कि ननद के मन में कोई खोट नहीं है इसलिए हंस हंस केताने मार रही है।
- जैसा कि हम दुआ ए अहद के इन वाक्यों में पढते हैं कि : अल्लाहुम्मा इन्नी उजद्दिदु लहु फ़ी सबीहते यौमी हाज़ा व मा इशतु मिन अय्यामी अहदंव व अकदंव व बै-अतन लहु फ़ी उनुक़ी ला अहूलु अन्हु वला अज़ूलु अ-ब-दा अल्लाहुम्मा इजअलनी मिन अंसारिहि व आवानिहि व अद्दाब्बीना अनहु व अल-मुसारि-ईना अलैहि फ़ी क़ज़ा ए हवाइजि-हि व अल-मुमतसिलीना लि-अवामिरिही व अल-मुहाम्मीना अन्हु व अस्साबिक़ीना इला इरा-दतिहि व अल-मुस-तश-हदीना बैना यदैहि।
- एक गीत की टूटी हुई कडियां मेरी नज़रों के आगे तैर आती हैं- ' ब् याकुल जियरा , ब् याकुल नैना , एक-एक चुप में , सौ-सौ बैना , रह गए आंसू , लुट गए रा ग. .. ' . यह विराग है- आर्त् तनाद तक पहुंचता शोकगायन . ' मितवा नहीं आए ' , और तमाम आलम सुई की आंख से होकर गुज़र गया और हर शै ज़र्रे में सिमटकर रह गई .
- अवधी में क्रिया रूपों में लिंग परिवर्तनता बहुत बार पायी जाती है- जो सम्पदा ( स्त्री . ) नीच गृह सोहा ( पु . ) , सात बार फिरि भाँवरि ( स्त्री . ) लीन्हा ( पु . ) , अस्त्र शस्त्र सबु साज ( पु . ) बनाई ( स्त्री . ) , रथी सारथिन ( पु . ) लिए बुलाई ( स्त्री . ) . इसी तरह से सम्बन्ध कारकों में लिंग भेद नहीं होता पेम के बैना , विरह कै आगि .
- और भी देखो- हिमाचल की पत्नी के मन में द्विधा है , विवाह योग्य पुत्री की जननी , पर पति के सामने एकदम गऊ - ' पतिहिं एकान्त पाइ कहि मैना , नाथ , न मैं समुझे मुनि बैना . ' ' हमने सब सुनी है , बोलो भला नारद की बात बे समुझी नायँ होंयगी ? औरत में ई सब समझै का माद्दा आदमी से जियादा होवत है . ' ' पर नीति कहती है , पति के सामने मूर्ख बने रहने में ही हित है .
- सावन में गाईजाने वाली कजरी का विरह-नाद हो , या फूलों के रंग में रंगे वसंत का अलसाया यौवन, होली की ठिठोली हो, या चैता की एकांत उदासी, सभी का अपना स्थान कवि के गीतों में सुनिश्चित है-“महुआ बन फूल झरे, मद मातल नैना रे महकत मग धूर ,हवा पी बोतल बैना रे”“धरती ओढ़े रंगल दोलाई, धानी बिछल चदरिया पीयर रंगल छींट के पगड़ी, हरियल रंगल घंघरिया” सन १९६२ में भारत-चीन युद्ध काल में समय की मांग को देखते हुए अनिरुद्ध जी ने देश के जवानों में जोश भरने के लिए अनेक देश गीतों की रचना की.