मलय पवन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ! आ वसन्त ! खेलो होली ! - मंथर गति से मलय पवन आ सौरभ से नहला जाता , कुहू-कुहू करके कोकिल जब मंगल गान सुना जाता ! हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब अवनि उमंगित होती थी , स्वागत को ऋतुरा ज. .. ! भविष्य का सपना - * भविष्य का सपना * * मन पखेरू उड़ने लगा है * * नए नए सपने संजोने लगा है * * दिल में एक नया एहसास उमंगें ले रहा है * * नई पीढ़ी का भविष्य भी अब सुनहरा हो रहा है * ...
- ' इंद्रधनुषों से घिरी हुई हूँ मैं जब से तुमने मुझे नाम से पुकारा ह ै, जब से तुम्हारे हाथों को छुआ मैं वसंत हुई फिर पतंगों सा उड़ा मन देखकर तुमको ।' - अज्ञा त ' वसंते सानंदे कुसुमित लताभिः परिवृते स्फुरन्नानापद्मे सरसि कलहंसानि सुभगे सखीभिः खेलन्ती मलयपवनान्दोलितजले स्मरेधस्त्वां तस्य ज्वर जनित पीड़ा पसरत ि' हे देव ी, वसंत में खिली लताओं से मंडि त, नाना कमलों स े, हंसों की मंडली से अलंकृत मलय पवन से आंदोलित सरोवर में सखियों के मध्य क्रीड़ा करती हुई तुम्हारा ध्यान करने से ज्वरजनित पीड़ा दूर होती है।
- आ कुछ दूर चलें , फिर सोचे....... आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें अमराई की घनी छाँव में नदी किनारे बधीं नाव में बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें मन आंगन उपवन जैसा था प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें स्वप्नों की मादक मदिरा ले मलय पवन से शीतलता ले फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें विक्रम सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जायेगा ...
- आ वसन्त ! खेलो होली ! मंथर गति से मलय पवन आ सौरभ से नहला जाता , कुहू-कुहू करके कोकिल जब मंगल गान सुना जाता ! हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब अवनि उमंगित होती थी , स्वागत को ऋतुराज तुम्हारे सुख स्वप्नों में खोती थी ! भर फूलों में र... देर तक देखती रही...दूर तक देखती रही.....!!! *यूँ ही इक दिन खिड़की से जाने किसे जाते,* *देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही......* * * *ख्यालो में खोई थी या,* *खुद के अन्दर उठे सवालों में उलझी थी* *मन आवाज़ दे रहा था,* *पर मौन **खड़ी **अपलक खिड़की से...