मिरगी रोग का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मिथुन लग्न हो चन्द्र पूर्ण अस्त होकर पहले भाव में हो , मंगल दशम भाव में छाया ग्रह से दृष्ट या युत हो तो मिरगी रोग से जातक पीड़ित होता है।
- कन्या लग्न : लग्न में हस्त नक्षत्र उदय हो और चंद्र पंचम भाव में अस्त हो और राहु से युक्त हो तथा मंगल लग्न में हो , तो मिरगी रोग होता है।
- मीन लग्न : लग्नेश छठे या अष्टम भाव में हो , बुध लग्न में सूर्य के साथ हो , मंगल अष्टम में राहु-केतु से युक्त एवं दृष्ट हो , तो मिरगी रोग होता है।
- कफ की मिरगी : यदि रोगी की त्वचा का रंग सफेद हो जाए , मुंह से सफेद झाग निकले , आंखों और मुंह का रंग भी सफेद हो , तो कफ का मिरगी रोग समझें।
- तुला लग्न : लग्न में विशाखा नक्षत्र उदित हो , गुरु और शुक्र सप्तम भाव में सूर्य से पूर्ण अस्त हों और मंगल-चंद्र राहु और केतु के प्रभाव में हों , तो मिरगी रोग होता है।
- कर्क लग्न : कर्क लग्न मंगल , सूर्य , चंद्र लग्न में हो , या अष्टम भाव में हो और अस्त हो तथा लग्न एवं लग्नेश राहु से दृष्ट हों , तो मिरगी रोग होता है।
- धनु लग्न : लग्न में मूल नक्षत्र उदित हो और बुध तथा चंद्र लग्न में हों , बुध लग्नांशों पर ही गुरु , मंगल त्रिक स्थानों में राहु-केतु से दृष्ट एवं युक्त हों , तो मिरगी रोग होता है।
- प्राचीन आयुर्वेदिक आचार्यों के मतानुसार चिंता , क्रोध , शोक , क्षोभ आदि मानसिक संतापों से दूषित हुए वात , पित्त और कफ मस्तिष्क को प्रभावित करते हंै , जिससे स्मरण शक्ति नष्ट हो कर मिरगी रोग बन जाता है।
- ज्योतिष ग्रंथ जातक तत्व के अनुसार मिरगी के कुछ ज्योतिषीय योग जैसे चंद्र और राहु की अष्टम में स्थिति , सूर्य , चंद्र मंगल लग्न और अष्टम भाव में साथ-साथ हो और अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो मिरगी रोग होता है।
- पीपल , चित्रक , पीपरामूल , त्रिफला , चव्य , सौंठ वायविडंग , सेंधा नमक , अजवायन , धनिया , सफेद जीरा , सभी को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें और सुबह-शाम पानी के साथ लेने से मिरगी रोग में लाभ होता है।