मूर्धा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- प्रस्तुत सूत्र द्वारा मूर्धा - प्रदेश ( हृदय ) में संयम का निर्देश किया गया है ॥ 34 ॥
- ' ण' का उच्चारण मूर्धा के सबसे ऊपरी हिस्से में होता है, ये मूर्धा का मूल भाग माना गया है।
- ' ण' का उच्चारण मूर्धा के सबसे ऊपरी हिस्से में होता है, ये मूर्धा का मूल भाग माना गया है।
- अर्थात् प्राण , वायु के मूर्धा , वक्ष प्रदेश , कण्ठ , जिह्वा , मुख , नासिका स्थान है ।
- या मंगल के प्रचलित मन्त्र “ ॐ अग्नि मूर्धा दिवः ककुत्पतिः - ” का पाठ कर इतिश्री मान लेते हैं।
- मुँह के भीतर ट , ठ, ड, ढ बोलने पर जीभ जिस स्थान पर लगती है वह स्थान मूर्धा कहलाता है।
- ट , ठ, ड, ढ को बोलने पर मुँह में जिस स्थान पर जीभ लगती है, वह स्थान मूर्धा होता है।
- श को तालु में , ष को मूर्धा में और स को दन्त में जीभ लगा कर बोला जाता है।
- तालु मूर्धा को कामधेनु की उपमा दी गई है और जिह्वाग्र भाग से उसे सहलाना पयपान कहा गया है ।।
- ट , ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।