रुद्रट का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- || , || 6. काल-विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट ||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||
- रुद्रट ( 9 ई.) ने “सम्यक् ज्ञान” को, आनंदवर्धन ने “तृष्णाक्षयसुख” को, तथा अन्यों ने “सर्वचित्तवृत्तिप्रशम”, निर्विशेषचित्तवृत्ति, “घृति” या “उत्साह” को स्थायीभाव माना।
- रुद्रट ( 9 ई.) ने “सम्यक् ज्ञान” को, आनंदवर्धन ने “तृष्णाक्षयसुख” को, तथा अन्यों ने “सर्वचित्तवृत्तिप्रशम”, निर्विशेषचित्तवृत्ति, “घृति” या “उत्साह” को स्थायीभाव माना।
- संस्कृत आचार्यों में हमें - भारत-मुनि , भामह , दण्डी , रुद्रट और वामन की मान्यताएँ दृष्टिगोचर होता है . १ .
- संस्कृत आचार्यों में हमें - भारत-मुनि , भामह , दण्डी , रुद्रट और वामन की मान्यताएँ दृष्टिगोचर होता है . १ .
- || , || 6. काल-विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट ||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||, || 10.
- ( 2) अलंकार संप्रदाय के प्रमुख आचार्य भामह (छठी शताब्दी का पूर्वार्ध), दंडी (सातवीं शताब्दी), उद्भट (आठवीं शताब्दी) तथा रुद्रट (नवीं शताब्दी का पूर्वार्ध) हैं।
- भामह के विचार से वक्रार्थविजाएक शब्दोक्ति अथवा शब्दार्थवैचित्र्य का नाम अलंकार है ( वक्राभिधेतशब्दोक्तिरिष्टा वाचामलं-कृति:।) रुद्रट अभिधानप्रकारविशेष को ही अलंकार कहते हैं (अभिधानप्रकाशविशेषा एव चालंकारा:)।
- नायक-नायिका भेद करते समय आचार्य रुद्रट ने वेश्यानायिका का वर्णन मात्र दो श्लोकों में किया है , किन्तु रुद्रभट्ट ने इसका विस्तार से वर्णन किया है।
- लक्षण आचार्य भामह ने प्रस्तुत किया है और परवर्ती आचार्यों में दंडी , रुद्रट तथा विश्वनाथ ने अपने अपने ढंग से इस लक्षण का विस्तार किया है।