विचक्षणा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- विचक्षणा : खफा मत हो , अपनी ओर देखो , आप आप ही हो , एक अक्षर नहीं जानते तिस पर भी हीरा तौलते हो , और हम सब पढ़ लिख कर भी अब तक कपास ही तौलती हैं।
- विचक्षणा : और तुम भी जो टें टें किये ही जाओगे तो तुम्हारी भी स्वर्ग काट के एक ओर के पोंछ की अनुप्रास मूड़ देंगे और लिखने की सामग्री मुंह में पोत कर पान के मसाले का टीका लगा देंगे।
- विचक्षणा : महारानी ! आपके आग्रह से यह कपिंजल और भी अकड़ा जाता है , जैसे सन की गांठ भिगाने से उलटी कड़ी होती है , उसको जाने दीजिए इधर देखिए यह गवांरिनों के गीतों और चांचर से मोहित सूर्य यद्यपि धीरे चलता है तो भी अब कितना पास आ गया है।
- विचक्षणा : हैं हैं ! एकबारगी इतने लाल पीले हो गए , जो जैसा है उसका गुण तो उस के काव्य ही से प्रकट हो गया , तुम्हारे काव्य की उपमा तो ठीक ऐसी है जैसे लम्बस्तनी के गले में मोती की माला , बड़े पेट वाली को कामदार कुरती , सिर मुण्डी को फूलों की चोटी और कानी को काजल।
- इसीलिए हम तो यही मानते हैं कि दूसरे के पूर्वार्द्ध में ' कवयो विदु : ' - ' सूक्ष्म बुद्धिवाले जानते हैं ' , उत्तरार्द्ध में ' विचक्षणा : प्राहु : ' - ' कुशल लोग कहते हैं ' तथा तीसरे के पूर्वार्द्ध में ' प्राहुर्मनीषिण : ' - ' मनीषी लोग कहते हैं , ' और उत्तरार्द्ध में ' अपरे प्राहु : ' - ' दूसरे लोग कहते हैं ' - ऐसा कह के चार मतवादों या सिद्धांतों का कर्मों के त्याग के बारे में वर्णन किया गया है।
- इसीलिए हम तो यही मानते हैं कि दूसरे के पूर्वार्द्ध में ' कवयो विदु : ' - ' सूक्ष्म बुद्धिवाले जानते हैं ' , उत्तरार्द्ध में ' विचक्षणा : प्राहु : ' - ' कुशल लोग कहते हैं ' तथा तीसरे के पूर्वार्द्ध में ' प्राहुर्मनीषिण : ' - ' मनीषी लोग कहते हैं , ' और उत्तरार्द्ध में ' अपरे प्राहु : ' - ' दूसरे लोग कहते हैं ' - ऐसा कह के चार मतवादों या सिद्धांतों का कर्मों के त्याग के बारे में वर्णन किया गया है।