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विरद का अर्थ

विरद अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. जो अपने विरद के लिए पवित्र जीवों को छोड़कर पामरों से प्रेम करता हो ? गोस्वामी तुलसीदासजी एक-एक घटना को गिनाते हुए बताते हैं कि कृष्णावतार में राक्षसी पूतना अपने स्तनों में विष लगाकर उन्हें मारने गई थी, पर उन्होंने उसे माता जैसी गति प्रदान की;
  2. विपत्ति काल में सत्गुरु अपने दीक्षित शिष्यों की पुकार पर वे एक ही समय में विश्व के अनेकों भागों में समान रूप , रंग , गुण , कौशल व अभेद देह में प्रकट होते रहे हैं और अपना विरद निभाने के लिए आगे भी यूँ ही प्रकट होते रहेंगे।
  3. मद-विह्वल कामना प्रेम की , मानो, अलसाई-सी कुसुम-कुसुम पर विरद मंद मधु गति में घूम रही हो सूत्रधार सारी देह समेत निबिड़ आलिंगन में भरने को गगन खोल कर बाँह विसुध वसुधा पर झुका हुआ है नटी सुख की सुगम्भीर बेला, मादकता की धारा मॅ समाधिस्थ संसार अचेतन बह्ता - सा लगता है.
  4. भावार्थ : - ( जानकीजी ने कहा- ) हे तात ! मेरा प्रणाम निवेदन करना और इस प्रकार कहना- हे प्रभु ! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण काम हैं ( आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है ) , तथापि दीनों ( दुःखियों ) पर दया करना आपका विरद है ( और मैं दीन हूँ ) अतः उस विरद को याद करके , हे नाथ ! मेरे भारी संकट को दूर कीजिए॥ 2 ॥
  5. भावार्थ : - ( जानकीजी ने कहा- ) हे तात ! मेरा प्रणाम निवेदन करना और इस प्रकार कहना- हे प्रभु ! यद्यपि आप सब प्रकार से पूर्ण काम हैं ( आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है ) , तथापि दीनों ( दुःखियों ) पर दया करना आपका विरद है ( और मैं दीन हूँ ) अतः उस विरद को याद करके , हे नाथ ! मेरे भारी संकट को दूर कीजिए॥ 2 ॥
  6. यद्यपि मनुष्य - देह दुर्लभ और नाशवान भी है , तथापि जब उसका नाश करके उससे भी अधिक किसी शाश्वत वस्तु की प्राप्ति कर लेनी होती है ( जैसे देश , धर्म और सत्य के लिए अपनी प्रतिज्ञा , व्रत और विरद की रक्षा के लिए एवं इज्ज़त , कीर्ति और सर्वभूत - हित के लिए ) तब , ऐसे समय पर अनेक महात्माओं ने इस तीव्र कर्त्तव्याग्नि में आनन्द से अपने प्राणों की भी आहुति दे दी है।
  7. तेरे सिर पर सीता-राम फ़िकर फ़िर काहे की तेरे बिगड़े बनेगें काम फ़िकर फ़िर काहे की पितु रघुवर श्री जानकी मैया फ़िर क्यों परेशान हो भैया तेरे हरेंगें कष्ट तमाम फ़िकर फ़िर काहे की जो जन राम-कथा सत-संगी उनके सहाय श्री बजरंगी अतुलित-बल के धाम फ़िकर फ़िर काहे की अगर प्रभु मनमानी करेंगें नहीं सरणागत पीर हरेंगें होगा विरद बदनाम फ़िकर फ़िर काहे की अब सौमित्र न आह भरो तुम नहीं व्यर्थ परवाह करो तुम रटो राम का नाम फ़िकर फ़िर काहे की कृष्ण जिनका नाम है . ...
  8. प्रीति की रीति जिसे भी आ जाती हैऔर जिसे यह प्रीति हृदय की विरद नीति समझा जाती हैउसे अकेलेपन का भय भी कहाँ सता पाता है क्षण भर ? वह तो इस एकाकीपन को ही जीता रहता है जीवन भरऔर इसी एकाकीपन में हृदय द्वार जब आता कोईअंधेरी-सी नीरवता में गीत रश्मि बिखराता कोईतब उस मनभावन का दर्शन, भर देता है उर में कम्पनऔर इन्ही कम्पन-पंखों पर उड़ता है प्रेमी का निज-मनफ़िर तो एकाकीपन अपने हीन भाग्य पर रोने लगताडूब रास में उर के स्नेही एकाकीपन खोने लगता ।
  9. राजा पीपा की ऐसी अवस्था हो गई , वह अधीनता से ऐसे निवेदन करने जाने लगा-हे दाता ! कृपा करके दर्शन दीजिए मैं कंगाल आपके द्वार पर आकर नतमस्तक पड़ा हूं , अब और तो कोई आसरा नहीं | कृपा करो , प्रभु ! हे दातार ! आप भक्तों के रक्षक मालिक हो , आपका विरद पतितों का उद्धार करना है | आपके बिना कोई नहीं , आप दातार हो , अपना हाथ देकर मेरी लाज रखो तथा भव-सागर से पार करो ! दया करो दाता , आपके बिना कोई भव-सागर से पार नहीं कर सकता | ...
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